- उन्होंने यह कहने को कहा है कि वे आपसे कभी.. कभी नहीं मिलेंगी।
उन्होंने दरवाज़ा खोला ही था, एक आधा बिस्किट उनके हाथ में था और मैं गले नहीं लगा पहले, ना ही छुआ उन्हें और यह कहा मैंने।
मुझे लगा था कि वे गिर जाएँगे। पर इसके अलावा कोई और तरीका नहीं था। क्या होता जो मैं अन्दर जाता, वे हँसते कि इस बार तो तुम मंगलवार को ही आ गए हो और मैं कहता कि हँसो मत पिता, तुम्हारी पत्नी अब तुम्हारी पत्नी नहीं है।
पर वे गिरे नहीं। देखते रहे मुझे। और फिर बोले कि क्या मैं मज़ाक़ कर रहा हूं? मैं यहाँ मई की गर्मी में दोपहर के साढ़े तीन बजे मज़ाक़ करने आऊंगा? मैं पसीने से भीगा हुआ था और सोच रहा था कि क्या वे फ़्रिज में पानी रखने लगे होंगे अब, और अब कौनसी बात पर पहुँचकर मुझे पानी माँगना चाहिए।
- अंदर आ जाओ..
- मुझे काम है थोड़ा.. यहाँ कोर्ट में।
वे रुके ज़रा।
- तुम भी नहीं मिलोगे इसके बाद?
- मैं...मैं तो यहीं हूं.. मैं क्यों नहीं मिलूंगा?
फिर वे चुप रहे। उन्होंने मुड़कर अपने घर की तरफ़ देखा जैसे वह बदल गया हो इस एक मिनट में, या अंदर चोर घुसे हुए हों और वे देख रहे हों कि कितना सामान बचा है। और वे गिड़गिड़ाने को हुए जब, तब मुझे अफ़सोस हुआ अपने पैदा होने पर, और इस बेवकूफ़ी पर कि क्यों नहीं मैंने एक एसएमएस कर दिया, जैसा माँ ने कहा था मुझे।