उसने उंगलियों पर गिनी चीजें। और एक और झोंका आया, धड़
से बजी खिड़की। बाल लहरा गए हवा में, उसने अपनी छाया देखी काँच पर। बालों
की भी छाया। उसने एक घर देखा सामने जिसके एक कमरे में रोशनी थी और एक बच्चा घुटनों
पर झुका बैठा था एक दीवार के सामने।
वहाँ टीवी था क्या?
उसने फिर से गिनना शुरू किया। दस्तानों को, मोजों को, चश्मों को। फिर अचानक रुका वह बीच में ही और दायां हाथ, जिस पर वह गिन रहा था, आगे बढ़ाकर हथेली खोल
ली उसने, जैसे पानी गिरेगा अभी। वहाँ टीवी था क्या?
सामने वाला बच्चा अपनी खिड़की पर आ गया था, एक औरत थी उसके पीछे और कोई
औज़ार था उसके हाथ में, शायद पेंचकस, जिससे
वह उसे खोलने की कोशिश कर रहा था।
कोई चिल्लाया नीचे कहीं, जाते हुए किसी दोस्त के लिए कुछ शायद, और वे हँसे दोनों। एक कुत्ता भौंकता रहा देर तक।
आप क्या कहना चाहेंगे? (Click here if you are not on Facebook)
जो दिल में आए, कहें।
Post a Comment