कमरे दो हों या हज़ार
क़त्ल करने की जगह हमेशा मौजूद रहती है घर में
मैं एक फंदा बनाके बैठा रहा कल सारी रात
कि तुम जगोगी जब पानी पीने
मैंने अपनी इस आस्था से चिपककर बिताई वह पूरी रात
कि गले में कुछ मोम जमा हुआ है मेरे और तुम्हारे
और वही ईश्वर है
जो हमें बोलने, उछलने और खिड़की खोलकर कूद जाने से रोकता है
जम्हाई लेने से भी कभी-कभी
पर कसाई होने से नहीं
कैसे बिताई मैंने कितनी रातें, इस पर मैं एक निबंध लिखना
चाहता हूं
इस पर भी कि कैसे देखा मैंने उसे सोते हुए,
सफेद आयतों वाले लाल तकिये पर उसके गाल,
वह मेरे रेगिस्तान में नहर की तरह आती थी
वह जब साँस लेती थी तो मैं उसके नथुनों में शरण लेकर मर जाना चाहता था
उसकी आँखें उस फ़ौजी की आँखें थीं, जिसने अभी लाश नहीं देखी एक
भी
और वह हरे फ़ौजी ट्रक में ख़ुद को लोहे से बचाते हुए चढ़ रहा है
जैसे बचा लेगा
यूं वो इश्क़ में खंजरों पर चली