कैसे सोचते थे ना
कि तुम पुल बनोगे
और एक दरिया था, जिससे तुमने कहा
और एक दरिया था, जिससे तुमने कहा
कि दोपहर के दो बजे हैं
जबकि समय बस तुक्के का था
किसी ने कहा, कुछ करोड़ लोगों ने
और तुमने माना कि यही समय है
किसी ने कहा, कुछ करोड़ लोगों ने
और तुमने माना कि यही समय है
तुम्हारी हथेली पहले फिसलती थी हाथ से
या अलग होती थी, कौन जाने
पर सब कुछ अपने गिरने को बचा रहा था
लाल रंग फटता था आँखें मींचते ही
धूप टप्प से मेरे सामने गटर में गिर जाती थी
और मेरे पास रास्ता नहीं था कोई
मैं जिधर भी जाता था
कम से कम चार बार पूछता था रास्ता
एक रिक्शा वाले से, दूसरा किसी राहगीर से, तीसरा
पान वाले से
और चौथा ख़ुद से
कि अभी भी समय है, लौट चलो
जहाँ से तुम अपना पूरा सिर निकालकर लाए थे अकेले
एक पीले रंग की गेंद
एक बच्चे ने दी मुझे
और कहा कि उदास रहना अच्छी बात नहीं
हम सब स्कूल में साथ गए और साथ लौटे
और हमारे नम्बर अलग थे, कि कुछ कागज
की कॉपियां
जिन्हें बनाया एक आदमी ने
पिता ने कहा कि लिखो उनमें कुछ अपने दिमाग से हीरा निकालकर
और आदमी बनो
और हमने लिखा, कि हम आदमी बनना चाहते हैं
तुम्हारे दस में से नौ, तुम्हारे तीन
तुम हाथ ऊपर करके खड़े रहो बाहर पूरे तीसरे पीरियड
हाथ वही जिन्हें आसमान खींचता
उनका लाल रंग क्या, जो फटता जब मींचते आँखें?
कि हमने यातना देना तय किया एक दूसरे को
गिनना उसके घंटे और याद रखना
उन्हें पिरो लेना अपने कंधे के बैज पर
और बताना कि ये जो निशान हैं यहाँ बाँह पर
ये इसके टूटने के हैं
जो इस कविता की हद से बाहर टूटी थी
कविता भी कभी घर थी
तुम्हें सँभालने कौन आया था सबसे पहले
जब तुम ऐसे औंधे गिरे थे उस चबूतरे से
नीचे फूलों में, और काँटों में
काँटें आँख में जाएं
तो वहीं रह भी सकते हैं हमेशा के लिए
कि बाहर किसे अच्छा लगता है नफ़रत में नहाते रहना
क्या तुमने ठीक से पूरा पूरा बताया था उस डॉक्टर को
कि क्या हिलता है तुम्हारे अन्दर हर समय
और तुम कैसे ख़ुद को छोड़कर भाग जाना चाहते हो?
यहाँ आओ कि लेटो पूरे
भूलकर नम्बर
जो भी तुम्हारे बटुए में हैं
और अलमारी की डिग्रियों में
आओ कि मैं सारी संख्याओं को
किसी कबूतर के पंख से
नीचे गिरा दूं वहां
और हम वहाँ लौटें, जहाँ हम कभी नहीं हुए
बेहतर नहीं बनो
कुछ भी नहीं बनो
रहो
तुम घटनाओं को धोखा दो
कि वे तुम्हें देती आई हैं सदा
रोज़ आओ
बीतो
या बीतो नहीं
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