पत्नी का कमरा

Samuel Aranda
कंडक्टर का पहला अपहरण

रात थी। तारे भौंक रहे थे, कुत्ते चमक रहे थे| ऐसे में चोर आए और कंडक्टर को ले गए।

      कंडक्टर उदास किस्म का आदमी था। उसे इससे पहले अपहरण का अनुभव नहीं हुआ था इसलिए वह नौसिखियों की तरह पूरे रास्ते सवाल पूछता रहा। बस उसने यह सवाल नहीं पूछा कि उसे कहाँ ले जाया जा रहा है क्योंकि वह आँखें बन्द करके भी सिर्फ़ हवा की सरसराहट भर सुन लेता तो बता सकता था कि जीप कौनसे गाँव में से गुज़र रही है। इस तरह उसकी नौकरी पहली बार ठीक से काम आई।

      कंडक्टर की पत्नी हर दिन इतनी ख़ूबसूरत होती जाती थी कि कंडक्टर को उसे बार-बार टोकना पड़ता था कि यहीं रुक जाओ, इससे ज़्यादा ख़ूबसूरत होना हम सब झेल नहीं पाएँगे। लेकिन फिर वह दो-तीन दिन तक घर नहीं लौट पाता था और इसलिए उसे टोक भी नहीं पाता था। तब वह टोके हुए दिनों की स्थिरता को भी कवर कर लेती थी और घर लौटते ही कंडक्टर का मन करता था कि मर जाए। कुछ दिन पहले ही उसने तैरना सीखा था और इस तरह आत्महत्या का एक रास्ता तो हमेशा के लिए बन्द हो गया था।
 
    उस रात साढ़े नौ बजे उसकी पत्नी उसकी ओर से चेहरा फेरकर सोने के लिए लेट गई थी। वह कुछ देर सीधा लेटकर यह सोचता रहा कि किस तरह शुरुआत करे कि पत्नी उसका हाथ झटककर न हटा दे। बहुत सोचने के बाद वह इस नतीज़े पर पहुँचा कि कमर के निचले हिस्से पर हल्के-हल्के उंगलियाँ फिराना पत्नी को अच्छा लगता है और इसी से शुरुआत करने पर अपमानित होने का सबसे कम ख़तरा है। उसने करवट ली और पत्नी की चादर में हाथ डाला। पत्नी तुरंत कुछ दूर को हट गई। कंडक्टर ने हाथ निकाल लिया और बिस्तर से खड़ा होकर कमरे में चहल-कदमी करने लगा।

ऐसा ही होता था। उसकी सुन्दर पत्नी मोम के पुतले की तरह लेटी रहती थी और बीच में ही कंडक्टर का हौसला जवाब दे जाता था। तब वह उल्टा उछलकर निढाल सा अपने हिस्से के आधे बिस्तर पर आ गिरता था। वह तय करता था कि अब उसे छुएगा भी नहीं लेकिन वह इतनी सुन्दर और वह इतना उदास था कि...।

      उसकी आँखों पर पट्टी बँधी थी इसलिए क़रीब आधे घंटे के सफ़र के बाद उसे पता चला कि उसका अपहरण करने वाले तीन लोग थे। जिस ओर उसके हाथों को बाँधने वाली रस्सी जा रही थी, उसने उधर चेहरा घुमाकर पानी माँगा। उसी तरह, जिस तरह किसी समझदार अपहृत आदमी को माँगना चाहिए।
- क्या जात है?
कंडक्टर को एकदम से अपनी जाति याद नहीं आई और उसके मुँह से अंगूर निकल गया। दरअसल वह कुम्हार था और उनके गाँव के सब कुम्हार अंगूर की खेती करते थे। उसे यही सबसे पहले याद आया।

पहले ने दूसरे से पूछा- भैया, अंगूर झीमरों में आते हैं क्या?
- तू पानी पिला ना यार और ज़्यादा हो तो सुसरी बोतल बाहर फेंक दिये।

पानी के कुछ देर बाद उसने कुछ खाने को माँगा। उसे बिस्कुट खिलाए गए। उसके आख़िरी बिस्कुट के दौरान जीप रुकी। उसकी आँखों की पट्टी उतारी गई और वे चारों जीप से उतरे।
     
कंडक्टर ने रास्ते में ही सोच लिया था कि उसे ज़रूर ट्यूबवैल पर बने किसी कमरे में ले जाकर रखा जाएगा, जहाँ आम के बहुत पेड़ होंगे। यह बिल्कुल ऐसी ही लोकेशन निकली।
पहले ने माचिस जलाई और तीसरे के चेहरे के आगे की।
- इसे...इसे होणा था तेरी बीवी का खसम..(यहाँ तीली बुझ गई) और तूने वो बरफ़ी ब्याह ली।

अब कंडक्टर ने जाना कि दिन में फ़ोन कहाँ से आते थे और अपहरण का कारण पैसे की माँग नहीं, उसकी पत्नी की लवस्टोरी है।

उसने पूछा- साहब, मैं इनका चेहरा नहीं देख पाया। दुबारा जलाओगे?
-         क्यों नहीं? यहाँ होमलाइट के होलसेल डीलर हैं ना हम तो। कुएँ की सीढ़ी से बाँध
साले को। भागने की कोशिश करेगा तो पाताल में जाएगा।

कंडक्टर को अकेला छोड़कर वे गाँव में चले गए जहाँ उन्होंने शराब पीते हुए मीना कुमारी की कोई रोती हुई फ़िल्म देखी और मानव जीवन के नश्वर होने के बारे में बातें कीं।
अकेले छूटे कंडक्टर को दूसरी फ़िक्र यही हुई कि अब छ: वाली बस का क्या होगा।(पहली फ़िक्र के बारे में हम बाद में बात करेंगे) वह पछताया कि उन तीनों को 6005 वाले कंडक्टर का नम्बर देकर फ़ोन करने को ही कह देता कि उसकी मेडिकल छुट्टी की अर्जी दे दे। मेडिकल की बात याद आने पर उसे यह अफ़सोस हुआ कि कुबड़े डॉक्टर को मेडिकल बनवाने के सौ रुपए भी देने पड़ेंगे।
यह कंडक्टर की पत्नी का गाँव था। इस गाँव तक कोई बस नहीं आती थी और यदि वह जीप न होती तो बहुत संभव था कि उन चारों को गाँव से आठ किलोमीटर पहले पड़ने वाले जंक्शननुमा गाँव में अगली सुबह के नौ-दस बजने का इंतज़ार करना पड़ता। तब आठ-नौ सवारियाँ जुटने पर कोई ताँगे वाला तैयार होता और वे चारों ताँगे में बैठकर उस गाँव में पहुँचते।

कंडक्टर की शादी के समय वह और उसके दो चचेरे भाई कार से आए थे और बाकी बारात छ: ताँगों में। पाँचवें किलोमीटर के पत्थर के बाद कार कुछ बिगड़ गई थी और कंडक्टर ने अपने उदास भाइयों के साथ एक ताँगे में ही लिफ़्ट ली थी। वह वर्षों से किसी ऐसी ज़गह नहीं गया था, जहाँ बस न जाती हो। ताँगे में बैठते ही उसका मन किया था कि टिकट काटने लगे और उसने टिकट की कॉपी निकालने के लिए जेब में हाथ भी मारा था, लेकिन कॉपी वहाँ नहीं थी। यदि अपहरण के बाद उसे बस से लाया जाता, तब ऐसी किसी हरकत की और भी अधिक संभावना थी। लेकिन शुक्र था कि दुनिया में समय रहते जीपें बना ली गई थीं।

सारा गाँव जानता था कि कंडक्टर की पत्नी शादी से पहले भी गाँव की छँटी हुई लड़कियों में से एक थी। इस छँटे होने को रिश्ते वालों को लाखों में एक होना बताया जाता था। सब जानते थे कि तीसरे अपहरणकर्ता से प्यार करने से पहले उसने एक एक करके अपने दो मौसेरे भाइयों, अपने एक टीचर और फिर एक साथ दो अधेड़ों से प्यार किया था। कंडक्टर के पिता जब उसे देखने आए थे, तब प्लेट लाते हुए उसके हाथ बिल्कुल आदर्श स्टाइल में काँप रहे थे और उसने ख़ासी मेहनत की थी कि अपना नाम बताते हुए हकलाए। कंडक्टर के पिता ग्रामीण बैंक के रिटायर्ड चौकीदार थे और ख़ुद को फौजी कहलवाना पसन्द करते थे। उन्होंने सीबीआई के स्टाइल में पूरे गाँव में लड़की की इंक्वायरी की। पूछा दो ही लोगों से लेकिन पूरे गाँव में हल्ला मच गया कि लड़की हाथ से निकल जाने वाली है।
कुछ ही मिनटों में कंडक्टर के पिता को पता चल गया कि वह कौनसे वार को कौनसे खेत में मिलती है और किस दिन व्रत रखती है। यह भी कि उसका कौनसा तिल अब तक किसी ने नहीं देखा और हर रात तीन बजे उसकी आँखें एक बार ज़रूर खुलती हैं।

बाकी कहानी किताब 'ग्यारहवीं-A के लड़के' में