इस कविता में शहद नहीं है

आपका ध्यान जाए या न जाए 
लेकिन किसी भी एक मिनट में मैं मारा जाऊँगा
या बहुत हुआ तो इकहत्तर सेकंड में

तब आप क्या करेंगे, बताइए
किसे किसे करेंगे फ़ोन
कितनी मिनट तक नहीं हँसेंगे
कितने दिन बाद कहने लगेंगे बिना आवाज़ के लड़खड़ाए
बिना भूले कि शाम को क्या क्या लेकर लौटना है घर
कि हां, वो हुआ करता था एक आदमी, जो बोलता कम था और मर गया 

क्या मेरी किसी भी तस्वीर में मैं हूँ?

लेकिन रुकिए,
यह अपने मरने का गाना गाकर सहानुभूति जुटाने वाली कविता नहीं है
जैसी ऑर्डर पर बहुत लिखी जाती हैं इन दिनों
कभी सौ रुपए में, कभी दो सौ में तीन
और अखबार उन्हें अहसान करने की तरह छापते हैं
आठ महीने बाद भेजते हैं चेक


आप मानें या न मानें, लेकिन अपनी ज़बान की तरह ही
कविता हमारे लिए शर्म की बात होती जा रही है
इसलिए हम उसके दूध में रोज़ मिलाते हैं गोलियाँ
और जब वह मरेगी
तो अचानक होगा यह, जैसे अचानक मरता है हर कवि
सांस लेने में तकलीफ़ की शिकायत के बाद उन्हें स्थानीय अस्पताल में भर्ती करवाया गया और आज सवेरे पांच बजे उन्होंने दम तोड़ दिया, पीछे छोड़ गए वे एक पत्नी, दो बच्चे और तीन महीने का किराया बाकी 

लेकिन कैसे दिलाऊँ आपको विश्वास कि भले ही मैं इस्तेमाल करता हूँ ऐसे बहुत से शब्द बार-बार
मगर यह मृत्यु की कविता नहीं थी
और यदि थी, तो यह मेरी कमी है कि मैं ज़्यादा बातें न बना सका इसके इर्द-गिर्द
जिससे कि इसे मदर्स डे या वेलेंटाइंस डे पर छापा जा सके या हिन्दी दिवस, श्रम दिवस पर
या कोर्स की किसी किताब में
जिसमें होता सवेरा, आती चिड़ियाएँ, उल्लास, सूरज, रोशनी और मोम होता 

मगर मैं भी कब तक छिपाऊँ
कि मुझे ठीक बीच में से निचोड़ा गया है
मेरी आँखों के रास्ते निकाल ली गई है मेरी याददाश्त
समय मेरे लिए बस हॉर्न बजाता एक स्कूटर है
जिसे कभी भी रोककर लूटा जा सकता है

मैंने अपने सिरहाने एक शीशा रखा है
और कविता लिखने से खुद को रोकने के लिए अक्सर
मैं उसे हौले हौले चबाता हूं

बाहर बहुत बरसता है शहद
पर मैं अपने पैर ढूंढ़ता रह जाता हूं।