सुधा कहाँ है?

शनिवार की रात-अमिताभ के साथ

वे दोनों अक्सर साथ ही रहती थी। जैसे आपका मन किया कि आज सिर्फ़ अकेली मिनी को देखना है गोलगप्पे खाते हुए, जब एक बड़ा सा गोलगप्पा मुँह में भरे हुए उसका पानी उसके होठों के बीच से चोरी चोरी बाहर निकल रहा हो, ठीक उस क्षण या तब, जब रंगरेज़ के सामने खड़ी होकर वह दो उंगलियों के बीच फंसी कतरन में एक हल्की सी डार्क मैरून शेड पर ज़ोर देकर उससे गलत रंग में दुपट्टा रंग देने पर झगड़ रही हो, तो अच्छी खासी संभावना है कि ऐसे मन को आपको महीनों तक मसोसकर रखना पड़े।

ऐसा होता था कि मिनी गोलगप्पा खा रही होती थी तो फ़्रेम में उसकी कटोरी में से पानी पी रही नीलम ज़रूर होती थी या मिनी दुकान वाले से झगड़ रही होती थी तो उसके पास बड़ी सी पॉलीथीन लेकर खड़ी नीलम रिक्शे वालों को रोक रोककर सतबाग का किराया पूछ रही होती थी। उन्हें अलग अलग देख लेना कस्बे की ब्रेकिंग न्यूज़ बन जाने लायक घटना तो ज़रूर थी। कई लड़के मिनी या नीलम के एक हफ़्ते के अन्दर एक बार अकेले दिख जाने की शर्त लगाकर हार चुके थे और ऐसा भी नहीं था कि वे बाहर कम निकलती थीं। दिन में गोलबाज़ार के दो चक्कर तो पक्के ही थे लेकिन एक दूसरी के बिना?
शायद कभी नहीं।

वैसे कुछ लोगों को इसमें फ़ायदा भी नज़र आता था। जैसे मेरे कटपीस वाले दोस्त संजय का कहना था कि इस बहाने दो माल एक साथ देखने को मिलते हैं और अगर किस्मत से वे आपकी दुकान में आ गईं तो दुगुनी बिक्री भी पक्की। नीलम को अगर जयपुरी कढ़ाई वाला कपड़ा पसन्द आया तो ऐसा हो ही नहीं सकता था कि मिनी कुछ न खरीदे या कुछ और खरीदे। वे दोनों मेड फॉर ईच अदर टाइप थीं।

मिनी स्टेट बैंक में नौकरी करती थी (यह मुझे पता नहीं कि किस पोस्ट पर थी। वैसे भी बैंक में काम करने वाले सब लोग मुझे एक ही पद पर एक सा काम करते हुए लगते हैं), लेकिन होमसाइंस कॉलेज के गर्ल्स हॉस्टल में रहती थी। नीलम उसी कॉलेज में पढ़ती थी और उसी हॉस्टल में रहती थी। मिनी हाज़िरजवाब थी और थोड़ी गरम मिजाज भी। हॉस्टल की लड़कियों ने नीलम के अलावा किसी से भी उसे सीधे मुँह बात करते नहीं देखा था। नीलम शांत थी और सुन्दर भी। इन दोनों में से ही कोई वज़ह रही होगी कि एक रात अचानक ग्यारह बजे मुझे उसकी याद आने लगी और तड़के चार बजे तक मैं सो नहीं पाया। सुबह सात दस पर ब्रश करते हुए मुझे अचानक लगा कि मुझे उससे प्यार हो गया है। मैंने हड़बड़ी में कुल्ला किया और फिर परांठे खाते हुए अपना ध्यान उससे हटाने के लिए देर तक ज़ी सिनेमा देखता रहा। वह शायद शनिवार की रात-अमिताभ के साथ वाली सुबह थी।

वे सुबहें कुछ अलग सी थीं। मेरे पड़ोस की सुधा ज़िद करके अंग्रेज़ी का ट्यूशन पढ़ने लगी थी और उसके भाई को अपनी ममेरी बहन से इश्क़ हो गया था। वह एस एम एस का ज़माना नहीं था, लेकिन सुधा अपने भाई की प्रेमिका के लिए उन दिनों भी उसकी तरफ से अंग्रेज़ी वाली हिन्दी में ख़त लिखती थी। उसका भाई सिगरेट पीने लगा था और मन्दिर जाने लगा था। मेरे घर आने वाले अख़बार में राजनीति, चोरी-चकारी तथा गाँव-देहात की ख़बरें कम हो गई थीं और उनका स्थान एक छोटी सी लव स्टोरी की रसीली गपशप ने ले लिया था। उन दिनों मुझे रणवीर शौरी की किस्मत से रश्क़ होता था। नींद पूरी हो जाने पर भी कुछ खास सपनों की प्रतीक्षा में सुबह को लम्बा खींचकर मैं देर से उठने की कोशिश करता था। टीवी पर व्हिस्पर और स्टेफ़्री नामक कंपनियों के विज्ञापन कुछ ज़्यादा आने लगे थे, जिनमे लड़के लड़कियाँ एक बहुत ख़ूबसूरत पहाड़ी पर जाकर अंताक्षरी खेलते थे और लागा चुनरी में दाग, छिपाऊँ कैसे के बाद से अगला गाना गाने की बजाय एक विश्वसुन्दरीनुमा लड़की हीनभावना से ग्रस्त होकर रुआँसी हो जाती थी। फिर एक पट्टी पर नीली स्याही डालकर दिखाई जाती थी और लड़की का खोया हुआ आत्मविश्वास लौट आता था। जालंधर के खानदानी वैद्य बवेजा जी का कहना था कि वे खोई हुई जवानी भी तीन हफ़्ते में लौटा सकते हैं। शायद अमिताभ के साथ का असर था कि मैं तल्लीनता से मनोहर कहानियाँ पढ़ते हुए जगजीत सिंह की ग़ज़लें सुना करता था।

हॉस्टल वाली लड़कियाँ

एक दिन मैंने उनका रास्ता रोक लिया। अकेले नीलम से राह में मिल पाना बहुत कठिन काम था, इसलिए बहुत दिनों तक इंतज़ार करने के बाद आखिरकार मैंने गणेश प्रोविजन स्टोर के ठीक सामने खड़ी साइकिल को अपनी हड़बड़ी से गिराते हुए सुनिए कह ही दिया। नीलम नज़रें झुकाए हुए चल रही थी और मिनी अपनी बड़ी बड़ी आँखें इधर उधर डुलाते हुए। मिनी ने ही मेरा क्षीण सा स्वर सुनकर मेरी ओर पहले देखा और प्रश्नवाचक चिन्ह को अपनी भाव-भंगिमाओं से अभिव्यक्त करती हुई वहीं थम गई। नीलम जब दो तीन कदम आगे जाकर रुकी, तब तक मिनी मुझसे जी कहिए कह चुकी थी। अब मैं जब तक उधर पलटता, जिधर ठहरी हुई नीलम खड़ी थी, तब तक गणेश प्रोविजन वाले ने आकर मेरा कॉलर पकड़ लिया था। मेरी टक्कर से गिरी साइकिल उसकी दुकान के बाहर की ओर रखी कोल्ड ड्रिंक की बोतलों पर गिरी थी और नश्वर बोतलें नीचे गिरकर टूट गई थीं। मैं नीलम के चेहरे के भाव भी नहीं देख पाया था और दुकान वाला मुझे घसीटकर अपना नुक्सान दिखाने लगा था। वह जो बोल रहा था, मुझे सुनाई नहीं दे रहा था। ऐसा लग रहा था जैसे मेरी बन्द हुई आँखें वहीं नीलम से पीठ फेरे खड़ी हैं और उन आँखों का चेहरा कोका कोला की टूटी हुई बदजात बोतलों के सामने जबरदस्ती खड़ा कर दिया गया है। वे दोनों तुरंत वहाँ से चल दी थीं। मैं उसके बाद आधे घंटे तक उस दुकान वाले को गालियाँ बकता रहा था। गलती मेरी थी लेकिन जब झगड़े का अंत हुआ तो मैं गणेश प्रोविजन स्टोर वाले को खरी खोटी सुना रहा था और वह सिर झुका कर खड़ा था।
                        
शाम को मैंने संजय को पूरी कहानी सुनाई तो उसने दार्शनिकों वाले अंदाज़ में कहा था कि मुझे चिंता करने की कोई आवश्यकता नहीं है क्योंकि हॉस्टल वाली लड़कियों से सैटिंग करना अपेक्षाकृत आसान होता है और यह तब और भी आसान हो जाता है, जब लड़की का पहले कोई चक्कर न चला हो। उसने बताया कि लड़कियों के हॉस्टल का वातावरण प्रेम कहानियों के लिए उत्प्रेरक का काम करता है। उदाहरण के लिए एक लड़की का कुछ लफड़ा चल रहा है तो वह दिन भर उसी की बातें करेगी। खाना खाएगी तो बताएगी कि उसके उसे पुलाव कितना पसन्द है और पनीर की सब्जियों की ओर तो वह देख तक नहीं पाता, फ़िल्म देखेगी तो बताएगी कि मुझ से पहले वह सिर्फ़ सुष्मिता सेन से ही प्यार करता था, रोज़ शाम को लौटकर आते ही आसपास के कमरों की लड़कियों को इकट्ठा करके बताएगी कि उसने आज कहाँ कहाँ छुआ, क्या क्या किया। दूसरी लड़कियाँ, जिनका कभी कोई चक्कर नहीं चला, इन बातों को सुनते हुए उनकी पुतलियाँ फैलती सिकुड़ती रहेंगी, कभी आहें भरेंगी, कभी हँसेंगी और उनमें प्यार के प्रति उत्सुकता और उत्तेजना एक्सप्रेस स्पीड से बढ़ेगी। फिर वे अपने आस पास के लड़कों को लाइन देना शुरु करेंगी और जिसका चांस पहले लग गया, वह डांस भी जल्दी ही कर लेगा। फिर उसने अपनी बगल में रखे हुए फ़ोन का रिसीवर उठाकर कान से लगाया और फिर रख दिया। मुझे लगा कि उसने यह व्यस्तता अपनी बात का प्रभाव बढ़ाने के लिए दिखाई है। वाकई मुझ पर प्रभाव बढ़ा भी था। फिर उसने अपनी दुकान की रसीद वाली कॉपी के पन्ने पलटते हुए मुस्कुराकर धीरे से कहा कि लड़कियाँ आपस में एक एक बात शेयर करती हैं और यह एक एक बात ही आग में घी डालती है। मैं संजय के ज्ञान पर गदगद हो गया था और मैंने तभी दो कटिंग चाय मँगवाई थीं। चाय पीते हुए उसने कहा था कि चूंकि वे दोनों दिनभर साथ रहती हैं, इसलिए उनमें से किसी की किसी लड़के से सैटिंग होने का सवाल ही नहीं उठता।

बाकी कहानी किताब 'ग्यारहवीं-A के लड़के' में

(करीब तीन साल पहले लिखी गई यह कहानी मेरी शुरुआती कहानियों में से एक है। पहला चित्र Kristina Laurendi Havens का है और बाकी दोनों तस्वीरें Sally Mann की हैं।)