शनिवार की रात-अमिताभ के साथ
वे दोनों अक्सर साथ ही रहती थी। जैसे आपका मन किया कि आज सिर्फ़ अकेली मिनी को देखना है गोलगप्पे खाते हुए, जब एक बड़ा सा गोलगप्पा मुँह में भरे हुए उसका पानी उसके होठों के बीच से चोरी चोरी बाहर निकल रहा हो, ठीक उस क्षण या तब, जब रंगरेज़ के सामने खड़ी होकर वह दो उंगलियों के बीच फंसी कतरन में एक हल्की सी डार्क मैरून शेड पर ज़ोर देकर उससे गलत रंग में दुपट्टा रंग देने पर झगड़ रही हो, तो अच्छी खासी संभावना है कि ऐसे मन को आपको महीनों तक मसोसकर रखना पड़े।
ऐसा होता था कि मिनी
गोलगप्पा खा रही होती थी तो फ़्रेम में उसकी कटोरी में से पानी पी रही नीलम ज़रूर
होती थी या मिनी दुकान वाले से झगड़ रही होती थी तो उसके पास बड़ी सी पॉलीथीन लेकर
खड़ी नीलम रिक्शे वालों को रोक रोककर सतबाग का किराया पूछ रही होती थी। उन्हें अलग
अलग देख लेना कस्बे की ब्रेकिंग न्यूज़ बन जाने लायक घटना तो ज़रूर थी। कई लड़के मिनी
या नीलम के एक हफ़्ते के अन्दर एक बार अकेले दिख जाने की शर्त लगाकर हार चुके थे और
ऐसा भी नहीं था कि वे बाहर कम निकलती थीं। दिन में गोलबाज़ार के दो चक्कर तो पक्के ही
थे लेकिन एक दूसरी के बिना?
शायद कभी नहीं।