(यह कहानी आउटलुक पत्रिका के नवम्बर, 2011 अंक में छपी है)
हम ऐसा कहते ज़रूर थे
कि हमारी जान निकल जाएगी लेकिन वो निकलती नहीं थी। जब वे मुझे मारते थे तो मैं
बचाव के लिए किसी चीज का इस्तेमाल नहीं करता था। ऐसे दीवार की तरह आँगन के
बीचोंबीच खड़ा रहता जैसे मुझे कोई नहीं हिला सकता। मैं कोई देवता नहीं था कि किसी
अस्त्र से उनकी गालियों और लाठियों को वापस लौटा सकूं। वे मेरे शरीर और आत्मा में
उतरती थीं और छिपकर बैठ जाती थीं। लेकिन मैं खड़ा रहता था, आँखें पूरी खोले। मुझे
एक भी दृश्य नहीं भूलना था।
By Sally Mann |