रेशम ना होता तो कितना जीते रेशम के कीड़े?
मेरी नब्ज़ टटोलकर
मुझे दोबारा भरो बाँहों में
या तो मैं ज़िन्दा हूँ या हूँ तुम्हारे पास
ऐसे साँस को दीवार के सहारे खड़ा करके
नापो गुस्सा
मुझे दो शीशे दो
जिन्हें आपस में टकराकर तोड़ूं मैं और आवाज़ हो
पीछे तक जाकर फिर से देखो
कि यह इम्तिहान है, स्कूल है, बबूल है दुनिया
शाबाश कि निगल जाओ शब्द
भरो मुट्ठी और उनकी छतों को पिघलाकर पानी करो
ज़रा अदब सीखो मेरे दोस्त
वे आएँ तो उन्हें पानी दो, पूछो कि क्यों रोते हैं, कहाँ से आए हैं
कैसे हुए इतने सुन्दर जैसे सफेद
एक चक्कर और दो दुनिया को
मेरे गाल पर चिपकाओ हिन्द महासागर
मेरी हँसी का पानी मीठा हो
ज़रा शहर में जाओ और हिम्मत जुटाओ, लेकर आओ एक दोस्त
पत्ते की तरह हिलो
उखाड़ें जड़ें तो खून निकले
लावारिस न पाए जाओ
जलाओ उन्हें जब वे पूछें सवाल
वज़ीफ़े में पाओ रिक्शा और उसे चलाओ
मिट्टी बन जाओ, तालियाँ बजाओ
जब वे चाबी भरें तो गाना गाओ
लगाओ ताला, तीली दो, घर जलाओ
धरती को काँपने दो
अपने सिर को सँभालो
देखना वे फेंकेंगे उसे अभी एक दिन
भागकर जाओ, उसे बचाओ
जैसे जाते हो बार-बार, वैसे लौटकर दिखाओ
कभी पिंजरे में आओ, मुझे रुलाओ
आप क्या कहना चाहेंगे? (Click here if you are not on Facebook)
जो दिल में आए, कहें।
Post a Comment