यह भी एक दृश्य कि भरे आसमान में खाली मेरा चेहरा
एक भी आँख नहीं
आप मुझे पहचानते पर चेहरा ही तो
कौनसे हाथ पागल जो दुख को पूरा उठा सकते हैं
उसी की तरह नंगे
कौन उतना काँपता है जितनी सर्दी होती है
हम हाँफते हुए हाँफने को ज़्यादा याद करते हैं या साँस को?
अन्दर घुसने और बाहर आने के दरवाजे
स्टेशन पर क्या इसलिए भी अलग हैं कि
कोई बता न सके सफ़र का हाल?
मैं रोता बेआवाज़ अगर
तब क्या ज़्यादा अच्छा बच्चा होता?
ऐसे सोता जैसे जागना खोजा ही न गया हो
तुम थपथपाती सुबह तक, हम किताब होते
देर होती
एक भी आँख नहीं
आप मुझे पहचानते पर चेहरा ही तो
कौनसे हाथ पागल जो दुख को पूरा उठा सकते हैं
उसी की तरह नंगे
कौन उतना काँपता है जितनी सर्दी होती है
हम हाँफते हुए हाँफने को ज़्यादा याद करते हैं या साँस को?
अन्दर घुसने और बाहर आने के दरवाजे
स्टेशन पर क्या इसलिए भी अलग हैं कि
कोई बता न सके सफ़र का हाल?
मैं रोता बेआवाज़ अगर
तब क्या ज़्यादा अच्छा बच्चा होता?
ऐसे सोता जैसे जागना खोजा ही न गया हो
तुम थपथपाती सुबह तक, हम किताब होते
देर होती
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