बात पैसों की नहीं
है
और हो भी तो मेरी तो
नहीं है
मैं जब हवा में रच
सकता हूं रोटियाँ
जादू में दिला सकता
हूँ यक़ीन
मैं जब किसी रात
खिड़की से कूदकर
आपके सपनों में
पहुँच सकता हूँ
यूँ ही अपना सिर
थामे आसमान की ओर
कमर सीधी, सीना तना हुआ
जैसा मेरे पिता ने सिखाया था और खुद भूल गए थे
मैं जब हँसते हुए बता सकता हूँ
कि सुकरात ने क्या
क्या कहा था ग़लत
और मेरा पड़ोसी, जो
दुनिया से नफ़रत नहीं करना चाहता था
कैसे किसी घटना में
शामिल हुए बगैर मरा
मैं जब फ़ोन पर आपको
सुना सकता हूँ अपनी हँसी
जिसे सुबह सुबह ही
साबुन से धोया गया हो जैसे
मैं जब दुनिया से
मोहब्बत करना और बार बार जीना चाहता हूँ
मैं भला कैसे बता
सकता हूँ आपको भूखे मरने की कोई बात?
कि एक पढ़ा लिखा आदमी
बारिश में भीगते हुए
मरने के ख़याल से रोने लगा
मैं एक औरत के गर्भ
में हूँ बस
एक औरत मेरी आँखों
को खोल देती है हर मिंचने पर
सही कह रहे हैं आप
कि आप मेरा भला चाहते हैं
और नहीं भी चाहते
हों तो आप नहीं पहुँच सकते वहाँ
जहाँ मैं उसके
स्वर्ग जैसे खाली पर्स में ज़िन्दा हूँ
उसके कन्धे पर बैठा
वैसे, जैसे किसी ज़माने में तिल हुआ करते थे
या हमारे शहर में
खरगोश
खाने की बातों से
भरते हों हम अपना पेट
ऐसा बिल्कुल भी नहीं
है
मेरे घर की छत से
नहीं चूता एक भी बूँद पानी
ऐसा भी नहीं कि
दोस्त नहीं कोई,
कि रात को दो बजे
किसी को न किया जा सके फ़ोन
मदद माँगना
गिड़गिड़ाने जैसा लगे, रोना आ जाए बीच में ही
और फिर मुकरकर अपनी
बात से कहें कि मज़ाक था ये तो,
दिन बहुत अच्छे बीत
रहे हैं यार, कभी मिलो तो साथ खाएँगे खाना
खाना लेकिन क्या?
बहुत दिन से टाले
हैं बहुत सारे दोस्त
उनसे माफ़ी कि खाने
पर ना बुला सका
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जो दिल में आए, कहें।
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