हम सब बचा रहे थे अपने-अपने घरों की औरतें


मेरी आँख में बैठकर
वे मेरी दुनिया को इस तरह देखते थे
कि मैं तुम्हें किसी गुनाह की तरह छिपाता था अपने पीछे
तुम्हें चुप कराता हुआ जैसे बच्चे को बताते हैं कि बोलना नहीं
शेर आ जाएगा

किसी पुराने किले के बरामदे में
हमारे हाथों के बीच आसमान के रंग का पूरा आसमान था
बेमानी था
क्योंकि हम खेलना चाहते थे सिर उठाकर खड़े होने का कोई खेल

तुम रूठी जैसे किसी भी ज़िन्दा इंसान को रूठना चाहिए
फिर भी मैंने आसमान बेचकर चाबी खरीदी उसे खोलने के लिए
और दो तोते तुम्हारे लिए
जो मेरे चले जाने, भाग जाने पर
मेरी तरह बोलते थे तुमसे
मेरी तरह आसमान को देखते थे और कहते थे कि रोते हैं इस तरह
जैसे रोना हर किसी के लिए अलग चीज होता हो

जबकि पाप सा था अकेले जाना
फिर भी एक लड़की सड़क पर चली जाती थी अकेली
बिना किसी से कुछ कहे क्योंकि दुनिया के हर शब्द में खोजा जा सकता है निमंत्रण
बिना सुने कि वह कितनी नमकीन हो गई है जैसे यह तो कोई बात ही नहीं
बिना देखे कि आगे सड़क है उसके लिए बन्द
जबकि पैसा उसने भी दिया है बनने में और पसीना भी शायद

जबकि पाप सा था अकेले जाना
फिर भी चली जाती थी एक लड़की अकेली
उसका दिल और चेहरा जैसा था कभी,
वैसे ही उसकी त्वचा गुलाब होती जा रही थी
एक आदमी ने दूसरे आदमी से गुलाब के स्वाद को
शराब में घोलकर बताया
दूसरे आदमी ने सड़क को ताला लगाया
और कुत्तों की तरह मुस्कुराया

लड़की कैद में थी
जबकि आप उसे टीवी पर उतने कपड़ों में देख पा रहे थे
जितनों में देखना चाहते थे

उसकी माँ उसे पहचानने से इनकार करती थी
कि वो जिसे पैदा किया था उसने,
उसे तो आठ साल की उम्र में उठा ले गया था भेड़िया
ऐसा कहने पर माँ को थोड़े दिन और जीने की छूट मिलती थी
कुछ हज़ार और रोटियाँ सेकने की और थोड़ा पेट भरने की भी

रोशनी बहुत बेरहम थी
अँधेरे का उनसे थोड़ा दुआ सलाम था
पिता के नाम के बिना अक्सर
और कभी कभी तो अपने भी नाम के बिना
बाद के दिनों में किसी भी वक़्त वे
अकेली आती थीं और अकेली लौट जाती थीं
और जिनको आप लेने और छोड़ने जाते थे
आपको पता ही है कि वे दुनिया कितनी देख पाती थीं

ऐसा लग तो रहा है ज़रूर मगर यह अँधेरे की बात नहीं है
कि जब सड़क उलटी होती जा रही थी लड़की के ऊपर
और लड़की को बिना रोए उसके नीचे लेट जाना था
जैसे मरना हर किसी के लिए अलग चीज होता हो
तब मैं तुम्हें मेरी जान
दो कमज़ोर से तोतों से बहलाने की कोशिश कर रहा था

बताते हुए दुनिया को सुन्दर
बीच-बीच में हम रख रहे थे अपने बच्चों की आँखों पर हाथ

हम सब बचा रहे थे अपने अपने घरों की औरतें
जैसे उन्हें लेने तो हम हमेशा पहुँचेंगे वक़्त पर