हैरानी हमें ही होनी
थी सारी
बाज़ार जाने की तरह
तैयार रहता था घर
जिसमें सुन्दरता
इतनी थी कि पूछकर घुसता था जीवन
बाहर उतारकर जूते
जबकि ज़रूरी कुछ नहीं
था
यह गौरव सोलंकी की किताब है। इसमें कुछ चीजें हैं जो कहीं और नहीं हो सकती थीं। आप ऐसा भी समझ सकते हैं कि उन्हें कहीं और जगह नहीं मिली।
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इतना रवाना हुए कि घर भी पहुँचने की तरह लौटे |
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हम सब बचा रहे थे अपने-अपने घरों की औरतें |