तुम काटती जाती फ़ोन


एक मरने से बचने के लिए
चार तरह से जीना
किताबें लिखना
और अपना खून पीना
तुम ऊपर के किसी फ्लोर पर हो
और कोई खा गया है हमारे बीच का ज़ीना

मेरा सूरज तुम्हारे पर्स में है
मेरे पैर गड़े तुम्हारे फ़र्श में हैं
तुम्हें देखते हुए मैं भूलता जाता देखने के नियम
जितनी बार देखता, जितना उजाला बढ़ता
पहचानता तुम्हें उतना कम

नाचते हुए लोग कितनी बेरहमी से मारते पैर
भूलते जाते कि सड़क कितने बच्चों के रोने से बनी है
हम पूरी दुनिया के लिए होते जाते क्रूर
जैसे गुलाब पाएँगे बदले में,
एक बार मिलते तो किसी रस्म की तरह
तीन बार बोलते एक-दूसरे को बाय
जैसे हमारा बिछड़ना एक नया दुखांत नहीं
बचपन का सीखा हाथ की तरह हिलता एक शब्द है
वह भी छोटा और स्वीट।

तुम बसों में बैठती हुई,
खिड़कियों से मुझे देखती हुई किसी खेत में दौड़ते हुए
पसीने से लीपते हुए कोई कच्चा घर
किसी स्टॉप पर मैं तुम्हें पकड़ाता हुआ चाय
और तीन रुपए लेता हुआ

तुम दो शहर से तीन शहर जाती
दुनिया इतनी देखती हो कि काश, मुझे सब बता पाती
फिर भी सोचती हो कि अचानक आओगी किसी सुबह इस शहर भी
और मुझे चौंकाओगी, सब बताओगी  

तुम बार-बार काटती जाती फ़ोन
मैं मिलाता हुआ बार-बार,
काँपता हुआ, सँभलता हुआ, चूमता हुआ रसोई के बर्तन
करता इस दरवाजे के पूरा टूटने का इंतज़ार
उनके घुसने का और मुझे मार डालने का

बस वे तुम्हें फ़ोन न करें बाद में,
चौंकाएँ नहीं मेरे राम!