आपने अपनी बैठक में जो रस्सियाँ बाँधी थीं हमारे तमाशे के लिए
हम तभी से सर, उन पर झूल रहे हैं
और आपको ऐसा लगता है कि भूल रहे हैं
हम अपने यक़ीन, अपनी आग का
इश्क़ जैसा कोई ख़ूबसूरत नाम रखना चाहते हैं
भूख लगने पर उसे चखना चाहते हैं
लेकिन आप देखते तक नहीं हमें और चिल्लाने में मशगूल हैं
रोटियाँ नहीं हैं माना, पर क्यों इतने स्कूल हैं?
और स्कूल से वे जो बच्चे लौट रहे हैं
आप उनसे झूमकर गले मिलेंगे, हमारे बारे में बताएँगे
वे बच्चे हैं सर! वे गिर पड़ेंगे
उनके कलेजे भर भर आएँगे
पर आखिर में सब ठीक होगा, जैसे सब ठीक हो जाना चाहिए
किसी इतवार वे कहेंगे कि उन्हें कविता नहीं, गाना चाहिए
हम नहीं दावा करते कि अच्छा गाएँगे लेकिन ये ज़रूर है कि
गले को चाकुओं से काटकर आपके सामने सजाते जाएँगे
फिर भी ज़रूरी नहीं कि आप और वे ग़मगीन हों
बल्कि दुआ करेंगे कि आपके यहां बहुत चाय हो, बिस्कुट नमकीन हों
आप चाहे हमें चींटियों की तरह भूल जाएँ
आपके बच्चे किसी जन्नत जैसे स्कूल जाएँ
बस हमें या तो आसमान दें या अँधेरी कोठरी,
ये सुन्दर कमरा और इसमें चार जालियाँ न दें
बस इतना कीजिए कि जब हम खाने को कुछ माँगें
तो थालियाँ दें, न दें पर तालियाँ न दें
[+/-] |
किसी इतवार का गाना |
[+/-] |
महान होने से ठीक पहले एक नदी थी |
महान होने से ठीक पहले एक नदी थी
जिसमें हम धो रहे थे अपना हँसना
रोटियाँ बहुत थीं, दाँत कम थे जैसे जश्न बहुत था, फ़ुर्सत कम
रस्में इतनी थीं हमारे होठों के बीच में कि हम
कविता की तरह
सिर पर लगाने की कोई ग़ैरज़रूरी चीज हो गए थे
इतने मज़बूर दोनों कि उसके पास मुझसे बाँटने को थी अघा जाने की याद
मैं उसे बताता था कि कितनी और तरह से भूखा रहा जा सकता है
इसके बाद जो बात मैंने उससे कही
वह किसी और की बात थी, कहीं और कही गई किसी और दुख में
जिसे मैं ज़िन्दा बचने के अकेले रास्ते की तरह उससे कह रहा था
भूल रहा था उतना ही
लोग इतने थे कि अपने पिता को पहचानना हुआ जाता था मुश्किल
मैं जिसके हाथ के भरोसे सोता था हर दोपहर
सर उठाकर देता था तुम्हें गालियाँ
वह किसी नाटक का किरदार था, जिसे इंटरवल से पहले मरना था
इस तरह सुखांत की मज़बूरियों के बीच
क्लाइमैक्स में उसने जो हाथ मेरे माथे पर रखा
वह उसका हाथ होते हुए भी किसी डॉक्टर, किसी बूढ़ी औरत का हाथ था
जिसकी उंगलियाँ जीवन की तरह चमकती थीं
फिर भी हम दोनों एक आख़िरी तरह से खाली थे
मैं इस खेल को हारते हुए
भारी बनाते हुए अपनी आवाज़ को
ज़िन्दा लोगों की तरह गिड़गिड़ाया भरसक
जबकि मुझे याद था कि इस तरह मैं उन बच्चों की भी तौहीन कर रहा था
जिन्हें मेरे बाद पैदा होना था और पूछना था
कि हम समेटकर अपने तमाशे
क्यों नहीं ख़त्म कर सके दुनिया समय रहते?
नहीं की तो क्यों बुलाया उन बच्चों को यहाँ
जैसे मेला होगा, मिलेगी ईदी और पिचकारियाँ
हाँ, जो ज़मीन मुझे दी गई थी
मैं नहीं बो सका उसे ठीक
जो लोग मेरे सामने थे,
मैंने आख़िर तक नहीं पूछी उनकी ख़ैरियत
प्यार लुटाने को आतुर भली लड़कियों से जैसे,
वैसे बहुत क़रीबी शब्दों से मैं हमेशा बचा कविता में
फिर भी जो अंत आया, वह आम था
मरने के अलावा मरने का कोई और तरीका नहीं है
[+/-] |
ऊपर मृत्यु को जब मैंने एक शब्द में बदला |
बड़े दुख इतने छोटे लगेंगे आपको कि
मैं आत्महत्या की बात को ऐसे बताऊँगा
जैसे साल का सबसे बड़ा दिन इक्कीस जून था
जिसे एक थमी हुई ट्यूबवैल के बाहर की हरियाली में मैंने
अपनी मां के पिता के साथ देखा था,
वे कुछ जिलों को मुझसे ज़्यादा जानते थे
और उनके मरने के बाद मैंने जाना इतना कुछ, आप तो जानते ही हैं,
मगर जो बेकार था एक तरह से क्योंकि जहाँ दौड़ा जाता था मैं
वहाँ मरना एक ज़िम्मेदारी की तरह आता था
जिसमें वे सब साथियों की तरह गायब होते जा रहे थे
बस मेरे खून में कुछ लोग और कुछ खेत थे
और हममें से कोई भी जीवन के बारे में विश्वास से नहीं बता सकता था एक भी बात
किताबें लिखना बहुत आसान था
तब हम आकाश को आकाश की तरह जानते थे,
रात को सोने और पैरों को पाजेब की तरह,
मैंने जब खनकना पहली बार सुना
तब मैं उसे एक शब्द की तरह नहीं जानता था,
शब्द की तरह जानने के बाद मैं उसे खनकने की तरह नहीं सुन पाया
ऊपर मृत्यु को जब मैंने एक शब्द में बदला
तब उसका वैसा कोई अर्थ नहीं था
जैसा वे लड़कियाँ रोज़ आईने में देखती थीं