जैसे सफ़र कितना भी छोटा हो,
तैयारियाँ हमेशा बड़ी होती हैं,
हर बार रेल पकड़ने से पहले
आपको चीजों के होने और न होने पर
देर तक खीजना पड़ता है,
टूथब्रश सबसे ज़्यादा बार चेक किया जाता है बैग में
और सबसे ज़्यादा बार भूला जाता है
किसी दोपहर आप बहुत ख़ुश हों
तो निकल आता है किसी न किसी दाँत में दर्द
पैसा कितना भी हो, बटुए में कोई न कोई नोट ऐसा हमेशा रहता है
जिसके न चलने की फ़िक्र
आपको आधी रात के सपनों में भी लगातार खाती है
आप कभी खुलकर गोविन्दा की सी हँसी के साथ
नहीं खरीद रहे होते चीनी या टमाटर,
आप किसी दुकानदार के इतने दोस्त नहीं होना चाहते
कि उसे अँधेरे में फटा नोट न पकड़ा सकें
वह उंगली, जो हर सर्दी में सूजती है आपकी
आप उससे गर्मियों में भी सबसे ज़्यादा प्यार करते हैं,
तीन साल से नाराज़ एक दोस्त का चेहरा
जश्न की हर घूँट में चमकता है,
जीतने के बाद याद आते हैं वे सब लोग
जो आपसे बेहतर थे
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8 पाठकों का कहना है :
adbhut yar! 2m paagal ho. kaise koi itna sundar likh leta hai!
बेहतरीन। यह उन लोगों को पढना चाहिए जो यह कहते हैं कि कविता का अंत हो रहा है।
सुन्दर कविता . जैसे जैसे कविता आगे बढती है ऐसी ढेरों चीज़ें याद आने लगती हैं जिन्हें हमारी इस तरह की सूची में होना था .. और इस तरह यह अवचेतन की ऐसी कविता हो जाती है जिसे कभी खत्म नहीं होना है ... आपकी कहानियों की तरह आपकी कवितायें भी अद्वितीय हैं . बधाई और आभार .
गौरव भाई,लाजवाब! इतना बेहतरीन कैसे लिखा जाता है आपसे सीखना पडेगा।
अंतिम पंक्तियों ने तो जान ही निकाल दी...
डा.अजीत
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bahut achchhi kavita hai. ye SUJNA ungaliyo ka mujhe khinch laya padhne tak. Dhanywad
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