यह 'हिसार में हाहाकार' नामक नई कहानी का पहला भाग है। अगले भागों के लिंक नीचे, सबसे आख़िर में हैं।
राजश्री की अमर फ़िल्मों की तर्ज़ पर लेखक इस कहानी का नाम ‘राहुल संग श्वेता’ रखना चाहता था लेकिन ऐन वक़्त पर इंडिया टीवी का देशव्यापी ख़ुमार उसे ले डूबा। देश के लिए (या देश के साथ) राजश्री और इंडिया टीवी ने जो किया है, उसके प्रति सम्मान जताते हुए लेखक यह कहानी उन्हीं को समर्पित करता है।
#इस कहानी के लगभग सभी चरित्र और घटनाएँ वास्तविक हैं। यथार्थ से किसी भी तरह की असमानता को लेखक की कमी माना जाए।
उदाहरण के लिए हम एक फलवाले से शुरू करें। जिस तरह लोग अक्सर मज़बूरी में ही अध्यापक बनते हैं, राहुल भी कोई शौक से फल नहीं बेचता था। पहले उसकी मोबाइल एसेसरीज की एक दुकान थी। उसकी दुकान पर मोबाइल फ़ोनों के चमड़े और प्लास्टिक के कवर, रीचार्ज की सुविधा, कुछ सॉफ्टवेयर, गेम और वॉलपेपर मिलते थे। यह दुकान दिल्ली के मुखर्जी नगर में थी और राहुल की नहीं थी। दुकान का मालिक सरदार महेन्द्र सिंह और उसके तीन मोटे बेटे थे और उनके परिवार की ऐसी ही आठ और दुकानें तथा एक चारमंजिला घर था। वे सब दिन भर घर पर पड़े रहना पसंद करते थे। शायद इसीलिए उनके घर में सबसे जल्दी टूटने वाली चीज बेड थी। उनका ट्रांसपोर्ट का भी काम था। उनके हर ट्रक के पीछे ‘वाहे गुरु दा खालसा’ लिखा था और पिछले तीन साल में चार खलासी सिर्फ़ इसलिए निकाले जा चुके थे क्योंकि जब वे पीछे से ट्रक में चढ़ रहे थे, तब उनके पैर उन लिखे हुए अक्षरों को छू गए थे। महेन्द्र सिंह के सबसे छोटे बेटे हरप्रीत सिंह ने दो को तो कमर तोड़कर भेजा था।
राहुल की उम्र पच्चीस थी और वह बारहवीं तक पढ़ा था। उसे शायरी लिखने और फ़िल्मी गाने सुनने का शौक था। वह समझदार था, इसलिए गुरूनानक देव जी की बड़ी सी तस्वीर पर हर सुबह नई माला चढ़ाता था। उसके नीचे पंजाबी में लिखा था- उच्चा दर बाबे नानक दा. कोष्ठक में – By Harman Automobiles.
राहुल दिल्ली में अपनी माँ के साथ रहता था और उसके पिता हिसार के किसी गाँव में एक अमीर किसान के यहाँ नौकर थे। राहुल ने मुझे जो नाम बताए थे, उनके अनुसार उसके पिता का नाम रोशन राय मल्होत्रा और उसकी माँ का नाम मिसेज रीना मल्होत्रा था। अमीर किसान का नाम शमशेर सिंह मलिक था।
एक दिन शमशेर सिंह ने रोशन राय मल्होत्रा से कहा कि वह हिसार से पाँच-सात सीडी खरीदकर लाए। रोशन राय नया था और उसके मालिक को यह याद नहीं था। रोशन ने कौनसी सीडी और कौनसी दुकान से जैसे सवाल किए तो शमशेर सिंह को गुस्सा आया और रोशन को तोहफ़े में बहन की एक गाली मिली। रोशन की बहन यानी राहुल की बुआ धनबाद के पास अपने बच्चों के साथ कोयला ढोती थी और वह गाली उस तक इस तरह पहुँची कि उसका छोटा बेटा (जिसका नाम उपलब्ध नहीं है) ठेकेदार के हाथों पिटा। उसे आधा अतिरिक्त घंटा तसले ढोने पड़े। लगभग उसी वक्त रोशन राय मल्होत्रा हिसार से बस में बैठकर गाँव लौट रहे थे। गाँव का नाम हलदस था और सीडी स्कूल गर्ल्स फर्स्ट टाइम, टीन गर्ल्स, माई फ्रेंड्स हॉट मॉम, कॉल सेंटर स्कैंडल और देसी रीयल स्कैंडल्स नाम की थीं। जब रोशन राय बस से उतरे तो उनकी पिंडलियों में दर्द हो रहा था और उनका जी किया कि वे अपनी पत्नी रीना से बात करें। अँधेरा होने लगा था, उनके पास मोबाइल नहीं था और गाँव के दोनों पीसीओ दूसरे कोने पर थे।
आपने हलदस नहीं देखा होगा। मैंने भी नहीं देखा, लेकिन मैं उसके कोने-कोने के बारे में बता सकता हूँ। बड़े तालाब और छोटे तालाब के बीच की दूरी से लेकर प्राइमरी स्कूल में पढ़ाने वाली मैडम अन्नपूर्णा के चरित्र की कमियों तक।
लम्बी दूरी के बावज़ूद रोशन राय ने तय किया कि वे पीसीओ पर जाकर रीना से बात करेंगे। वे थके और दर्द भरे कदमों से सीडी वाला लिफ़ाफ़ा हाथ में लिए चमारों वाली गली में घुस गए। यह दो वैकल्पिक रास्तों में से नज़दीकी था। यह संकरी गली थी, जिसमें रोशनी जितनी कम थी, शोर उतना ही ज़्यादा था। आधी गली के बाद कीचड़ से भरी एक कच्ची नाली पार करनी होती थी, जिसकी चौड़ाई के बारे में कोई अनुमान नहीं लगाया जा सकता था। वहीं रोशन राय फिसले और गिर गए। अपने घर के बाहर खड़ी चौदह-पन्द्रह साल की एक लड़की ने उन्हें देखा और दौड़कर उन्हें उठाने बढ़ी। बदबू थी, वे शर्मिन्दा थे और सोचे रहे थे कि जब एकांत मिलेगा तो रोएँगे। तभी लड़की ने उन्हें उठाने के लिए हाथ बढ़ाया और दुर्भाग्यवश जो हाथ उन्होंने दिया, उसमें सीडी वाला लिफ़ाफ़ा था, जिसे उन्होंने कीचड़ से पूरी तरह बचा लिया था। लड़की ने हाथ की बजाय लिफ़ाफ़ा पकड़ लिया। उसके पीछे बाहर निकल आए उसके बड़े भाई राजेश को लगा कि यह बूढ़ा यही लिफ़ाफ़ा पकड़ाने यहाँ आया था और गिरना इस घटना के साथ घटी छोटी सी घटना है। उसने लपककर अपनी बहन के हाथ से लिफ़ाफ़ा ले लिया। कहीं से माचिस या मोमबत्ती आई होगी, तभी उसने रोशनी में उन सीडियों पर लिखे हुए नाम देखे।
इसके बाद रोशन राय को पानी से इसलिए धोया गया ताकि बाद में हाथ-पैरों से धोया जा सके। उनकी उम्र अड़तालीस साल थी और उन्हें धुँधला दिखता था। इसलिए वे उन चेहरों को भी नहीं देख पा रहे थे, जो उन्हें खा जाना चाहते थे। पाँच-सात मिनट बाद उन्होंने जैसे-तैसे बोला कि वे शमशेर सिंह के नौकर हैं और ये सीडी उनके मालिक की हैं।
पन्द्रह साल की उस नेकदिल लड़की गीता को, जिसने कीचड़ में गिरे आदमी को उठाने के लिए हाथ बढ़ाया था, एक दिन बहुत सवेरे ईख के घने खेत में शमशेर सिंह मलिक ने पकड़ लिया था और कहा था – आजा मेरी जान, मेरी रेलगाड़ी। गीता चिल्लाई थी और अपनी देह पर उसके हाथों के और मन पर, उसके इरादों के दबाव लेकर लौट आई थी। राजेश गुस्से में घर की दीवारों पर चमचे और सब्जी की टोकरियाँ उठा-उठाकर फेंकता रहा था। फिर वह अपनी गली से बाहर निकलकर कुछ दूर तक गया था और आधे घंटे बाद डरा हुआ सा लौट आया था। गीता ने सोचा था कि किसी दिन वह ऐसा कुछ करेगी, जिससे उसके भाई को बहुत तकलीफ़ हो।
राजेश और गीता के स्वभाव में उसके बाद कई परिवर्तन आए। राजेश अपने दोस्तों से कटा-कटा रहने लगा। उसकी उम्र पच्चीस साल थी और एक शाम खाना खाते हुए उसने अपनी माँ से कहा कि वह कभी शादी नहीं करेगा। उसकी माँ घबराई, जैसे चूल्हे के सामने बैठकर धुएँ को जादू से मिटा देने की चाह रखने वाली कोई भी माँ इस बात पर घबराती है। फिर यह बात मज़ाक में उड़ाने की घरेलू कोशिशें हुईं। लड़कियाँ देखी जाने लगीं या कम से कम यह दिखाया जाने लगा कि लड़कियाँ देखी जा रही हैं। पक्का शौचालय बनवाने की योजना भी बनी, लेकिन राजेश ने कहा कि वह शहर जाएगा और लड़ेगा।
लड़ेगा किससे और क्यों, यह स्पष्ट नहीं हो पा रहा था। वह नाखूनों से बिना लिपाई की दीवारें खुरचता था और ‘दैनिक समाज की आवाज’ नामक अख़बार पढ़कर पसीना-पसीना हो जाता था। वह घर से कम से कम बाहर निकलता था। उसका चेहरा गोल और गोरा होने लगा था। उसने एक दिन दाढ़ी बनाई और फिर नौ-दस दिन बाद एक सुबह जब वह शीशे में देखकर बाल बना रहा था, उसने ग़ौर किया कि उसकी दाढ़ी और मूँछें ज़रा भी नहीं बढ़ी हैं। सबसे ज़्यादा वह इसी बात से घबराया।
खेत वाली घटना के तीन दिन बाद जो रात आई, उसमें गीता दस बजे अपने बिस्तर से उठी और घर से बाहर निकल गई। पूरी गली में अँधेरा था और फिर उस रात के छोटे से चाँद ने उसे शमशेर मलिक के घर के सामने ही देखा।
शमशेर मलिक की उम्र चालीस-बयालीस साल थी और उस रात वे दुनिया के सबसे ख़ुश आदमी थे। वे इस आनंद से सराबोर थे कि एक कमसिन लड़की उनके प्रेम-निवेदन से वशीभूत होकर यहाँ तक आई है और उन्होंने भविष्य की असंख्य मज़ेदार रातों की भी कल्पना कर ली। उन्हें लगा कि लड़की से जो भी करना है, प्यार के आवरण में ही करना होगा, इसलिए उसके आते ही वे ‘मेरी जान, मैं तेरे से प्यार करता हूँ’ बोलने लगे थे। उन्होंने चीते की तरह झपटकर गीता के कपड़े उतार दिए और फिर अपने भी। बस उनसे यही गलती हुई कि अपने कपड़े उतारने के बाद उन्हें गीता के हाथ का चाकू दिखा। यह उनके घर का सबसे बाहर का कमरा था और उसके कोने में उनका जीवन और मर्दानगी गीता के रहम पर ही थी। गीता ने कोई रहम नहीं दिखाया लेकिन वह कोई पेशेवर चाकूबाज नहीं थी और उसे महीने में एक ही बार पीने को दूध मिलता था इसलिए उसने जो वार किया, वह लक्ष्य को किनारे से छूता हुआ निकला। खून की धार और शमशेर सिंह की चीख निकली, लेकिन उनका ऐतिहासिक पुरुषत्व कायम रहा। जबकि गीता को लगा कि काम हो गया है। वह निश्चिंत होकर उठी। अपने घायल शरीर को हाथ से इस तरह थामे हुए जैसे उनके हाथ, हाथ नहीं, डेटॉल हों, वे इतने बेबस हो गए थे कि रोने लगे और गीता अपने कपड़े पहनकर आराम से लौट आई।
लेकिन विजय की उस रात के बाद वह अकेली घर से बाहर निकलते हुए डरती थी। उसके बाद उसे शमशेर सिंह की किसी भी तरह की, कोई भी ख़बर नहीं मिली थी। उसे लगता था कि वह ज़्यादा दिन तक नहीं बच पाएगी, ज़रूर कुछ बहुत बुरा होगा। लेकिन बुरा किसी व्यवस्थित और योजनाबद्ध ढंग से नहीं होता। यदि होता भी, तब भी उस शाम रोशन राय मल्होत्रा ने फिसलकर स्थितियाँ उसी तरह बदल दीं, जिस तरह वे अपने बचपन से ही अपने आसपास की घटनाओं का रंग-रूप बदल देते थे। अपने दोस्तों के बीच की हर लड़ाई के अंत में – चाहे वे विजेता के पक्ष में हों, चाहे पराजित के और चाहे तटस्थ – उन्हें ही अपमानित होना होता था। पाँचवीं तक की पढ़ाई में अच्छे नम्बर लाने पर भी वे हर तीसरे दिन पिटते थे। वे जब एक महीने के थे, तब उनकी माँ ममता के सब उदाहरणों पर अपनी असहमति के हस्ताक्षर करते हुए एक धोबी के साथ भाग गई थी। अपनी शादी की रात जब उन्होंने पसीना-पसीना होकर भी रीना को अपनी छाती से चिपका रखा था, रीना ने कॉन्वेंट में पढ़ी शहरी लड़कियों के अंदाज़ में अपने पति से अपना अतीत न छिपाने का निर्णय लिया था और कहा था कि वह अपने गाँव के एक बढ़ई की पत्नी होना चाहती थी। दुर्भाग्यवश (यह कहते हुए उसने अपने मन में कहा था- नसीब अच्छा था हमारा) उन्होंने अग्नि और अदालत के चरणों को छोड़कर शादी के सभी चरण पार कर लिए थे। छ: महीने पहले – वह आत्मघाती अप्रैल था – खून के देवता ने उसके कपड़ों को पूरा महीना नहीं छुआ था और तब वह घबराई थी। उससे ज़्यादा उसकी माँ। बढ़ई अपने आधे बने दरवाज़े और कुर्सियाँ छोड़कर भाग गया था, जिन्हें रीना के पिता उसके गर्भपात के बाद उठाकर अपने घर ले आए थे। रोशन राय के पिता को दहेज में मिलने वाले उस फ़र्नीचर ने ही सबसे ज़्यादा आकर्षित किया था।
रोशन राय ने एक गहरी साँस के साथ गर्भ में मरी उस बच्ची को याद किया (जाने वे कैसे जानते थे कि वह लड़की थी) और कहा कि वे फिर भी जीवन भर रीना से प्यार करेंगे। बदले में उसे लकड़ी के उस सारे सामान को अपने हाथों से जलाना होगा। रीना ने कहा- हाँ।
जब सब राख हुई तो रोशन राय को अचानक लगा कि उनकी अनपढ़ पत्नी महान है और बदले में रीना ने अपने दिल में कालिख भर ली। इतनी कि जब राहुल पैदा हुआ, तब उनकी छाती में उतरने वाले दूध का रंग कोयले जैसा काला था। उस दूध को रोज़ नालियों में बहाया जाता रहा। राहुल इतना रोया कि गोरा होता गया। उसी साल अकाल पड़ा और वे मज़दूरी ढूँढ़ते हुए दिल्ली आ गए।
रोशन राय के फिसलने की उस शाम, बाहर दरवाज़े पर खड़े होने से पहले गीता का किसी से बात करने का मन हुआ था। जैसे ही शाम होने लगती थी, उसे लगता था कि कोई किराए की उदास आत्मा उस पर काबिज़ हो जाती है। वह घर के किसी सदस्य से बात नहीं करना चाहती थी, इसलिए उसने राजेश के मोबाइल से कस्टमर केयर पर फ़ोन लगाया था। कस्टमर केयर वाली लड़की ने पूछा था कि वह उसकी क्या सहायता कर सकती है? गीता ने कहा था- मेरा रोने को जी करता है और रोना नहीं आता।
- माफ़ कीजिए, क्या आपने आख़िरी अंक 9 ही दबाया था?
- हाँ, और उससे पहले एक दो तीन।
- क्या मैं आपका नाम और मोबाइल नम्बर जान सकती हूँ?
- यह मेरे भाई का नम्बर है। क्या आप दिल्ली या बम्बई में रहती हैं?
- दिल्ली में।
- वहाँ भी इतना दुख होता है?
- कितना?
- इतना कि आदमी लकड़ी की मेज की तरह होने लगता है।
- लेकिन हुआ क्या है?
- आप मुझे यहाँ से ले चलो।
श्वेता, जो उस टेलीकॉम कम्पनी के कॉल सेंटर में 12 से 8 की शिफ़्ट में काम करती थी, घबरा गई और उसने फ़ोन काट दिया। शायद पहली बार ऐसा हुआ कि उसने ‘आप श्वेता से बात कर रहे थे’ से कॉल का अंत नहीं किया। नहीं तो ऐसा होने लगा था कि वह अपनी माँ से फ़ोन पर बात करते हुए भी आख़िर में पूछती थी- क्या मैं आपकी कोई और सहायता कर सकती हूँ? और फिर चुप्पी के बाद उसके मुँह से अचानक निकलता था- ****** में कॉल करने के लिए धन्यवाद, आपका दिन शुभ हो। उसकी माँ घबरा जाती थी और चाहती थी कि वह, यह नौकरी छोड़कर बीए ऑनर्स में दाखिला ले ले। लेकिन पढ़ाई उसके लिए वही थी, जो प्रधानमंत्री श्री पप्पू के लिए पाकिस्तान था।
यह वही श्वेता थी, जो राहुल की दुकान के ऊपर तीसरी मंजिल पर किराए पर रहती थी। उसके मालिक भी महेन्द्र सिंह ही थे। वह रोज़ राहुल के सामने ही ग्यारह बजे सीढ़ियाँ उतरकर बस स्टॉप की ओर जाती और नौ बजे लौटती। जाते हुए वह गुलशन की तरह होती थी (ऐसा राहुल ने अपने दोस्त मधुर गुप्ता को बताया था) और लौटते हुए ऐसी, जैसे किसी मातम में जाने के लिए मानसिक रूप से तैयार हो रही हो। उसने अपने मोबाइल फ़ोन में उसकी छप्पन तस्वीरें ले रखी थीं। यह तीन महीने पहले तक था।
एक दिन अचानक वह उसकी दुकान पर रुकी और एसएमएस के रेट कम करवाने की स्कीम के बारे में पूछा। यह बाद में उसने राहुल को बताया कि उस स्कीम के बारे में वह और उसके ऑफ़िस के कम्प्यूटर कुछ नहीं जानते थे और तब तीन दिन में क़रीब पच्चीस ग्राहक उससे उसके बारे में पूछ चुके थे।
यानी राहुल उस टेलीकॉम कम्पनी के कॉल सेंटर से भी ज़्यादा जानता था। आप श्वेता क्या, कॉल सेंटर में काम करने वाली किसी भी लड़की को यह बताएँगे तो वह राहुल की दीवानी हो जाएगी। हाँ, श्वेता इस ज़रा सी बात पर कुछ ज़्यादा ही दीवानी हुई। इस के पीछे और भी वज़हें थीं, जो उसने राहुल को कभी नहीं बताईं।
पहले वह पंजाब के अबोहर कस्बे से दिल्ली आए यश नाम के लड़के से प्यार करती थी, जो उसके साथ ही काम करता था।
वे कहीं से भी आए हों, उन सबके नाम इतने आधुनिक थे कि मैं अपने स्कूल के उन लड़के-लड़कियों के बारे में सोचता था, जिनके नाम रामवीर, नरेश, सुनीता, जगदीप या विजय थे। ऐसे नामों वाले लोग अब कहीं भी नहीं मिलते थे। क्या उन्हें किसी ने ज़मीन में गाड़ दिया था या वे सब रैमी, मैडी और हैरियों में बदल गए थे।
राहुल से स्कीम पूछने से पहले वाले पूरे वीकएंड में यश ने श्वेता का फ़ोन नहीं उठाया था। इतवार शाम को उसने फ़ोन उठाया तो श्वेता रो पड़ी। वह अपने टैरेस पर ऑफ़िस के ही सात-आठ लड़के-लड़कियों के साथ पार्टी कर रहा था। अभी अभी उसने एक खाली बोतल फ़र्श पर तोड़ी थी और फ़ेयरी से कह रहा था कि वह जूते पहनकर उस काँच पर उसके साथ नाचे। फ़ेयरी थोड़ा नाची। फिर उसका मन किया कि थोड़ी और बीयर पिए। उसने कुछ घूँट भरी और फिर वह यश के पास लौट आई। वह नाचते हुए उसके होठों को चूमने लगा ही था कि उसकी उसी जेब में रखा हुआ मोबाइल बजा, जिस पर फ़ेयरी का हाथ था। वह मुस्कुराकर रुका और फ़ोन निकाला। उसने फ़ोन उठा भी लिया।
श्वेता को रोना नहीं चाहिए था, लेकिन उसके साथ रहने वाली उसकी बहन नंदिनी दो दिन से घर गई हुई थी और उसका प्रेमी उसका फ़ोन नहीं उठा रहा था। उसे उसकी एक क़रीबी दोस्त ने सिखाया भी था कि यश के सामने रोना मत, he just hates crying babes. मगर वह रो दी। यश ने गुस्से से कहा- why are you crying?
- तुम फ़ोन क्यों नहीं उठा रहे यश? मैंने क्या किया ऐसा?
- मैं busy था यार। काम भी हो जाता है बन्दे को।
- ये शोर कैसा है? Disc में हो तुम कहीं?
- कितने सवाल पूछती हो तुम। मैं तंग आ गया हूँ।
- Don’t you love me?
- Why do you ask it again and again? I think you want break up.
कोई ज़ोर से कुछ चिल्लाया।
- No baby, I love you.
- No, you don’t. You try to spy at me. मैं पक गया हूँ यार श्वेता।
- Let us meet Yash. I love you really. I miss you.
- I know you want break up और मैं तैयार हूँ श्वेता। हम फिर से friends बन जाते हैं।
- ये क्या बकवास है यश? मैंने कुछ कहा ही नहीं और तुम break up – break up गाए जा रहे हो। I love you..
- अपना ख़याल रखो श्वेता। Its over now.
ऑफ़िस की कई लड़कियाँ यश के साथ सोना चाहती थीं और यश उनके। फ़ोन काटते ही उसने फ़ेयरी को अपनी बाँहों में लिया और कमरे में घुस गया। दरवाज़ा बन्द करने से पहले, उसने पीते और नाचते हुए अपने दोस्तों को हाथ हिलाकर कहा- We will be back guys in ten minutes. सब ‘हूSSS’ करके चिल्लाए। निशा ने कहा- enjoy guys! दरवाज़ा बन्द करके यश ने ख़ज़ाना पा लेने की सी खुशी से फ़ेयरी को देखा और कहा- Let us do a quickie!
दो दिन और नंदिनी नहीं लौटी। श्वेता ऑफ़िस नहीं जा पाई। उसने यश को कई नाकाम फ़ोन कॉल की और जी भर के अपने कमरे की दीवारें घूरीं। सारे क्यूट और स्वीट पोस्टर उसने फाड़ दिए। दीवारों पर कुछ कीलें ठोकीं और उन पर फाड़-फाड़कर अपनी और यश की तस्वीरें टाँगीं (वे मोबाइल और लैपटॉप में थीं, इसलिए पहले उन्हें प्रिंट करवाकर लाना पड़ा)। तीसरे दिन उसने उन तस्वीरों को जलाया और तय किया कि कुछ भी हो, वह यश के कमरे पर जाकर उसे मनाएगी।
जब वह मंगलवार शाम को यश के कमरे पर पहुँची, तब वह अपनी शिफ्ट से वापस आकर सोया ही था। उसका उनींदा चेहरा श्वेता को बहुत मासूम लगा और उसने यश को गले से लगा लिया। फिर वह रोते हुए उसके गाल चूमने लगी। इससे यश को पुराने दिन याद आए। दोनों ने उन्हें दोहराया भी।
आधे घंटे बाद जब वह किसी रोमांटिक फ़िल्म के सुबह के दृश्य की तरह यश को अपनी गोद में लिटाकर उसके बालों से खेल रही थी, तब यश ने कहा कि चूँकि सब ख़त्म हो चुका है, इसलिए उसे वहाँ नहीं आना चाहिए था। श्वेता ने चाहा कि वह टीवी का कोई रिएलिटी शो होता जिसके बैकग्राउंड में कोई लाल परदा लगा होता और जब वह लौटती तो रोने के क्लोज-अप स्लो मोशन में रिकॉर्ड किए जाते। लेकिन वह चुपचाप लौट आई। रास्ते में सब्जीवालों का शोर और जल्दबाज़ मोटरसाइकिल वालों की रफ़्तार से लगती पैदल खरोंचें थीं।
फिर उसका ध्यान राहुल की तरफ़ गया। राहुल ने उसे बताया कि वह अपनी एक बड़ी सी कम्पनी खोलने का सपना देखता है जबकि उसकी ज़िन्दगी सौ रुपए के रीचार्ज पर बारह रुपए सर्विस टैक्स के कटने की बात, बेवकूफ़ लोगों को समझाने में जाया हो रही है।
जैसे यह अंतिम इच्छा हो, पिटने के बाद रोशन राय ने कहा कि वे अपनी पत्नी से फ़ोन पर बात करना चाहते हैं। राजेश ने नम्बर पूछकर अपने मोबाइल से मिलाया। वह फ़ोन राहुल के पास था और वह श्वेता से बात कर रहा था। दो-तीन बार मिलाने पर भी फ़ोन बिजी जाता रहा। रोशन राय को वह सोफासैट याद आया, जिसकी दो कुर्सियाँ अधूरी छोड़कर उनकी पत्नी का बढ़ई प्रेमी भाग गया था। जब उनके कहने पर रीना बाकी फ़र्नीचर के साथ उन तीन पायों वाली कुर्सियों को जला रही थी, उन्हें याद आया कि किसी ने बाहर का दरवाज़ा खटखटाया था और जब उन्होंने खोला तो वहाँ कोई नहीं था। वे आधे घंटे तक पड़ोसियों से पूछते और आसपास की गलियों में उस गायब मेहमान को ढूँढ़ते रहे थे। जब वे लौटे तो आँगन में कोयला था और रीना अन्दर कमरे में आराम से सो रही थी। वह फ़रवरी थी और फिर नवम्बर में राहुल पैदा हुआ।
राजेश ने रोशन राय से उनकी जाति पूछी और जवाब में अपनी ही जाति सुनकर उसे पछतावा सा हुआ। उसने एक लड़के को एक गिलास पानी लाने के लिए कहा। पानी आने से पहले ही रोशन राय ने धीरे से कहा- मैं मरना चाहता हूँ, और वे मर गए।
उनके मुँह में जबरदस्ती पानी उड़ेला गया, लिटाकर छाती और एड़ियाँ मसली गईं, किसी के कहने पर पहले ठंडे और फिर गरम पानी की बाल्टियाँ उनके शरीर पर उड़ेली गईं, प्याज फोड़कर नींबू के साथ उनकी आँखों पर मसला गया लेकिन वे ज़िन्दा नहीं हुए। आस-पास के सब लड़के भाग गए और आख़िर में अपने माँ-बाप और बहन के साथ राजेश ही लाश के पास बचा।
दूसरा भाग- हंटरवाली श्वेता और भागे हुए तीन लड़के
तीसरा और अंतिम भाग- कुछ एसएमएस और हिसार में प्यार की हत्या!
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3 पाठकों का कहना है :
काफ़ी engrossing कथानक और कैरेक्टर्स लगे. बहुत अच्छी शुरुआत है.. आगे की किश्तों का बेसब्री से इन्तज़ार रहेगा!!
padke achha laga
aage ki kadi ka intejar rahega
...
mere blog par
"jharna"
East or West....Gourav Solanki is best........kya likthe ho gourav bhai.....hindi me bole..adbhut aur aditiyaaaaaaaa
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