बार-बार कहना इतनी दूर तक फैला है, है इतना बेशुरू
कि पहली बार नहीं हो सकता
पहली उम्र कोई नहीं होती
और हर बाद में ज़रूरी है कि पहले दिन याद आते हों
हालांकि पहले आने वाला कोई आदमी पहले दिनों को पहले की तरह याद नहीं करता
इस तरह जो आगे दौड़े जाते हैं,
वे अपनी याददाश्त सिर पर चोट की तरह खो चुके हैं
मैं कैसे दिलाऊँ उन्हें उधार के हज़ार याद
मेरी उम्र जो मैंने उन्हें लगा दी
उन नाकुछ लोगों की उम्र जो मुझे लग गई
जिन्हें मैं जीता देखना चाहता हूँ
क्यों जानता हूँ कि बहुत देर तक नहीं बचा पाऊँगा
जबकि सब ड्राइवर शराब नहीं पीते
और एम्बुलेंसें अपना रास्ता खोज ही लेती हैं
फिर भी घर बेचे जाने ही हैं अपने कमरों समेत
उनमें खेले गए सब वर्जित खेलों,
उनमें ओढ़ी गई सब चादरों,
नहीं ओढ़ी गई चादरों,
नहीं मरे लोगों की मरने की शर्मिन्दा कोशिशों और उनकी सार्वजनिक हँसियों समेत
इच्छाएँ और माफ़ियाँ
क्यों महलों की तरह धरी रह जाती हैं
शब्द बनते जाते हैं वेश्या
क्यों हर रोज़ बढ़ती है ईंटें
जबकि सुबह कतार में अपने हिस्से की फाँसी का इंतज़ार करने से पहले की शाम
ये सब उनको बार-बार तोड़ते हैं
फिर रस्म की तरह
हाथ पीछे बाँधकर माँगते हैं अपने पैसे जैसे दया और आपकी बेटी माँगते हों
रेलगाड़ियों का फ़र्श पोंछ रहे बच्चों के दृश्यों को
किसी बहस में डुबोकर मारने की नाकाम कोशिश से पहले
आप उनसे सौ बार यही मोटा जन्म लेने की दुआएं झटक लेना चाहते हैं
जबकि आपके पास देने को एक ताज़ी साँस, एक पुराना सपना तक नहीं
आख़िर आपकी हँसी और गीतों से पीते हैं वे भूख मारने को चाय
जिसकी भाप में ख़त्म हो जाएँ भाषाएँ तो जान छूटे
किसी भी भाषा में मेरा होना इतनी बड़ी बात नहीं
जितना मेरी आदत होना होता
होता हमेशा होने से इतना बड़ा लगा कि
मैंने चश्मे पर लिखा तुम्हारा नाम
ताकि ठीक से पढ़ा जा सके
लेकिन पढ़ते हुए हम बार-बार वही पढ़ते रहे
जो और लिखा जा सकता था
बहुत दूर से लाना होता है पानी की तकलीफ़ को
यहां कुआं होता और होगा भी से बदलते थे
फ़्रिज कब तक हमें बासी होने से बचा सकते थे
लेकिन उम्मीद इतनी हावी थी हमारे अस्तित्व पर
कि मुझे तुम्हारे तो क्या
ज़ी सिनेमा के अहसान चुकाने का भी वक़्त नहीं मिला
[+/-] |
नहीं ओढ़ी गई चादरों समेत |
[+/-] |
ईश्वर दरअसल एक औरत है |
यहां कोई और बात की जानी थी
लेकिन मेरे पीछे बस दो ही लोग खड़े थे
उनमें से एक पानी पीने का कहकर गया था, नहीं लौटा, आप देख ही रहे हैं
और दूसरे को आसानी से मारा जा सकता है
वह ऐसी ही जाति का है
इसलिए यहाँ जो बेहद जरूरी बात की जानी थी
उसे सुनने के लिए
आपको किसी और की तरफ
- किसी तारे का बेटा, हो सकता है कि मरा मरा हो, न जानता हो आपकी ज़ुबान -
लेकिन उसी की तरफ आपको उम्मीद से देखना होगा
हालांकि उम्मीद एक बेशर्म शब्द है
मगर खर्च की ओर से रहिए बेफ़िक्र
मैं लौटाऊंगा आपके पैसे
या कुछ जादू हैं मेरे पास, कुछ मेलों के दृश्य,
कुछ लडकियाँ जिनका जिस्म पारदर्शी है और जो रोना नहीं जानतीं
फ़िलहाल जब वक्त है तो मैं
कौओं के बीच से आपको निकालकर
उड़ने की मुश्किलें बता सकता हूं
लेकिन आप शायद सोए हुए रंग के गुलाब पसंद करेंगे
मैं हर ओर लौट जाने की अपनी कोशिशों के बीच
आपके बीच मैदान में खड़ा मिलूंगा
समझदार कपड़े ऐसे उड़ रहे होंगे
जैसा किसी बारिश में उन्हें उड़ना चाहिए
हम उनसे हारेंगे नहीं, ऐसा ज़रूर कहेंगे
इसके बाद जपना होगा कोई मंत्र
और किसी आधी छूटी दावत से लौटने के पश्चाताप को
अब भूलना ही होगा
गिरकर जुड़ेंगे बर्तन
जिनके टूट जाने के लिए प्रार्थनाएँ की गई थीं
मैं फ़ोन पर बात करते हुए
उसमें से कहीं लौट आने के लिए भाग रहा होऊंगा
कॉल में उस समय का अँधेरा होगा
जब दिन अपनी क़ीमत लिए बिना नहीं बीतते थे
और यादों को लैम्पपोस्ट की रोशनी में पढ़ा जा सकता था
माथा झटककर नहीं हो जाएगा पश्चाताप
किसी अकेले शुक्रवार को
नाक ढाँपकर
अपने हिस्से की हवा को पैरों से नापते हुए
मैं दफ़्तरों जैसे तनाव से भरे
तुम्हारे घर पहुँचूंगा और माफ़ी माँगूंगा
ईश्वर दरअसल एक औरत है
इससे तो मैं दस साल पहले भी आपको चौंका सकता था
लेकिन सबसे ख़ूबसूरत बात कहने के लिए
मुझे थोड़ा और वक़्त दीजिए
थोड़े और सिर
थोड़ी और ज़िन्दगी
[+/-] |
न्यूटन का चौथा नियम |
मेरे कमरों की छत
- यदि आप सरकार से असहमत होने की ज़हमत उठाते हुए मानते हैं कि किसान अपने खेत का मालिक है और रहने वाला अपने मकान का-
तो मेरे हुए जो कमरे सोलह महीने से
उनकी छत रोने के आकार की बनवाई गई है
जबकि बनाने और बनवाने वाले कविता के बारे में कुछ जानते हों
ऐसा इलाहाबाद हाईकोर्ट का कोई न्यायाधीश तो कह सकता है
बाकी कोई नहीं
और सुना है कि यह नाकाम कोशिश होती है सदा
अपने निर्माण के ख़िलाफ़ लड़ना,
यह न्यूटन नहीं जानते थे
लेकिन उन्हीं की शैली का कोई नियम है
कि आप अपने पिता की हत्या नहीं कर सकते
और इस तरह नहीं रोक सकते अपना जन्म,
मैं जिस तरफ़ इशारा कर रहा हूं
उसमें आप जायदाद की लड़ाइयों के उदाहरण न लाएँ
तो बेहतर होगा
लेकिन मैं कब तक बचाऊँगा आपकी नज़ीरें,
आपका वक़्त और पवित्रता
जबकि मैं उन आस्थाओं को नहीं बचा सका, जिन्हें पृथ्वी के साथ होना था नष्ट
उन कुत्तों को, जो नींद के अलावा कुछ नहीं माँगते थे
आख़िर आपके दूधिया मुनाफ़े को मंत्रों से सुरक्षित करते हुए
मैं कब तक छिपा पाऊँगा यह तथ्य
कि मेरा भी एक शरीर है आपके नायकों जैसा
जिसे बच्चों की तरह की ठंड लगती है
अलग-अलग वक़्त अलग-अलग चीजों की भूख
और दिन छिपे से रोज़ाना डर
फिर भी जीवन रोशनी सा बहता है
जबकि उसमें पानी की कमी और तिलचट्टों की हत्याएँ हैं
और उन कमरों में
जहाँ महानता के ढोंग और उजली फ़िल्मों के दिलासे
आपको नहीं बचा सकते
मैं ‘रो देने’ के हिज्जों, उनकी ध्वनियों
और रोने की ध्वनि को टालते हुए
अपने बाल गिनता हूँ
सफ़र टालता हुआ और मुलाक़ातें
शर्मिन्दगी और दोस्तियाँ,
दीवारों और मेजों को टूटने से ऐसे बचाता हुआ
जैसे इस तरह सारी दुनिया बचा लूँगा और साथ में कश्मीर
जैसे एक बाल्टी पानी बचाकर
सिर तक भर दूँगा बाड़मेर का कोई गाँव
जैसे मैं चिल्लाऊँगा तो एक कैदी को तो छोड़ ही देंगे साहब
जैसे मेरे बोलने से कुछ कम बच्चों के सिर काटे जाएँगे
कुछ ज़्यादा स्कूल बन्द होंगे
कुछ वेटरों को मिलेगी ज़्यादा बख़्शीश
चार ज़्यादा लोग आँखें दान करने का फ़ॉर्म भरेंगे
और जल्दी मरेंगे
दो और लड़कियाँ आधी रात के बाद निकलेंगी घर से
और सलामत लौटेंगी, ख़ुश भी
न्यूटन के पिता सेबों के बारे में ज़्यादा नहीं जानते थे
और न्यूटन कविता के बारे में
वरना आप ख़ुद सोचिए
यह कहना कितना बेवकूफ़ लगता है
कि मुझे और तुम्हें धरती नीचे खींचती है
जबकि रोना ईंटों में है
और किसी सेमिनार में मेरे कमरों की छतों के बारे में कोई बात नहीं हो रही
न ही इस बारे में कि
अनाज लाने के लिए घरों से भागे हुए लोग
सोना पाकर भी वापस क्यों नहीं लौट पा रहे?