ऐसा यक़ीन नहीं होता था
कि इतिहास की किताब से पहले भी
और बाहर भी रहा होगा इतिहास
जैसे शायद अपने निबन्ध से पहले
गाय कहीं नहीं थी
कम से कम दो सींग चार थन (या दो?) वाली तरह तो नहीं
फिर भी रोशनी खोने पर
इतिहास खोने का डर था
जिसमें मैं चौथी क्लास में अपनी एक मैडम से हुए
इश्क़ को लेकर था बड़ा परेशान
तब लाल या साँवले रंग के थे लोग
क्योंकि साँवला लाल होना आदत था
उस पर रोने पर
सबके हँसने का डर था
शर्म इतनी आती थी पूरे कपड़े पहनने पर भी
कि मैं साँवला खाली था
फिल्मों में साँवली हिचकिचाती तालियाँ बजती थीं
सब अपनी पत्नियों के पास ले जाकर साँवले दुख
- अफ़सोस कि उन दुखों में बच्चे भी थे जो कार की तरह रोते थे, जिनके नाम मुश्किल रखे जाते थे, प्यारे कम हैरान ज़्यादा –
सब अपनी पत्नियों के पास ले जाकर साँवले दुख
फ़ैक्ट्री में ख़ूब गोरा काम करते थे
मोटा होना काले होने जैसा ऐब था
हम इलाज़ में हो जाते थे आधे डॉक्टर
डॉक्टर माँ के पेट से सीखकर आते थे हँसना
माँ ख़ुद मिट्टी खाती और मुझे रोकती थी
सुख के त्योहार थे
और दुख का निबन्ध तक नहीं था
निबन्ध नहीं को फाड़ा नहीं जा सकता था