देखना, न देखने जितना ही आसान था
मगर फिर भी इस गोल अभागी पृथ्वी पर
एक भी कोना ऐसा नहीं था
जहाँ दृश्य को किसी से बाँटे बिना
सिर्फ़ मैं तुम्हें देख पाता
घासलेट छिड़ककर मर जाने को टालने के लिए
हम घास बीनने जाया करते थे चारों तरफ
और इस तरह जाया करते थे अपनी अनमोल उम्र
फिर अपना हौसला पार्क के बाहर बेच रहे थे
बोर्ड पर लिखकर छ: रुपए दर्जन
और मैं तुम्हें रोशनदान से बाहर आने के दरवाजे सुझाते हुए
कैसे भूल गया था अपने भीख माँगने के दिन
जब तुम्हारे कानों में गेहूं की बालियाँ थीं
जिन्हें मैं भरपूर रोते हुए खा जाना चाहता था
इस तरह लगती थी भूख
कि चोटें छोटी लगती थीं और पैसे भगवान
हम अच्छी कविताओं के बारे में बात करते हुए
उन्हें पकाकर खाने के बारे में सोचते थे
बुरी कविताओं से भरते थे घर के बूढ़े अपना पेट
बच्चे खाते थे लोरियाँ
और रात भर रोते थे
तुम बरसात की हर शाम
कड़ाही में अपने हाथ तलती थी
कैदख़ाने का रंग पकौड़ियों जैसा था
जिसकी दीवारें चाटते हुए
मैंने माँगी थी तुम्हारे गर्भ में शरण
यदि देखने को भी खरीदना होता
तब क्या तुम मुझे माफ़ कर देती
इस बात के लिए
कि मैंने आखिर तक तुम्हारी आँखों के बारे में एक शब्द भी नहीं कहा