उधर से आओ तुम दोबारा
पान और पैसे खाते हुए
दृश्य में शाम को कोई टीवी देख रहा हो,
फिल्म नहीं
दर्द नहीं के बराबर होता हो,
कोई बच्चा बाँटता हो टॉफी तो बेहतर है।
हम सैनिक बनें या सताए जाएँ,
टक्कर खाएँ या अकेले हों,
किसी को भाई कहकर पुकारें और डरें नहीं,
जैसे डरना गिर गया हो छत से।
किसी की अंत्येष्टि हो तो
हम मुस्कुराना और योजनाएं बनाना सीखें।
सोते-सोते लिखना सीखें किताबें,
ट्रेन में करना प्यार।
दर्द हो तो
उसे दृश्य से मिटाकर सीख पाएं
बच्चों से टॉफी बँटवाना।
[+/-] |
टॉफी |
[+/-] |
भयानक |
फायदा इस बात में था
कि भागा जाता दोस्तों
लेकिन उसे हर बार की तरह लगा
कि कुतुब मीनार या पागल हो जाना चाहिए।
वे सब कतार में एक साथ
अलग-अलग थे
और काम यूं करते थे
जैसे करते हों प्रेम,
प्रेम इस तरह, जैसे मरे जाते हों अभी,
मरते ठंड और भूख से ही थे सब वैसे तो।
कुछ को मारती थी पुलिस,
कुछ को अँधेरा
और कुछ को समझदार होना।
शब्द खाली होते जाते थे
अपने मतलबों की तरह
और यूं लगता था कि कविताएं बच्चे लिखते हैं।
Subscribe to:
Posts (Atom)