गोल घूमता आकाश,
उजाला और ईमान,
मेरा खत्म होना, शुरू होना, तुम्हारा माँगना पानी,
देर और डर होना,
हम चले आते हैं ऐसे
जैसे जाना जाना न हो, हो श्मशान, ज्वालामुखी, घोड़ा आखिरी या ईश्वर ख़ुद।
बेहतरीन होने की जिद में
चप्पलें घर पर ही भूल जाना,
खींचना सौ किलो साँस, बाँटना शक्कर, देखना अख़बार।
हो जाना अंधा और खराब,
बिगड़ना जैसे कार,
भींचना मुट्ठी और गोली मारना,
सच बोलना और खाना जहर।
करारे परांठे और किताबें खाना,
बेचना दरवाजे, तोड़ना खिड़की,
घर होना या कि शहर,
तुम्हारी बाँहों में नष्ट होना,
जैसे होना स्वर्ग, लेना जन्म, माँगना किताबें, देखना जुगनू और बार बार वही आकाश।
शहर से बाहर आकर
अपने चश्मे और मतलब आँखों में लौट जाना।
माँगना माफ़ी।
चूमना और रोते जाना।
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8 पाठकों का कहना है :
nice
शहर से बाहर आकर
अपने चश्मे और मतलब आँखों में लौट जाना।
माँगना माफ़ी।
....man mein uthne wale sahaj bhawanaon ka chitran ki prastuti bahut achhi lagi...
Haardik shubhkamnayne
शहर से बाहर आकर
अपने चश्मे और मतलब आँखों में लौट जाना।
माँगना माफ़ी।
चूमना और रोते जाना।
Aah! Har koyi shayad isee kashtime sawar hai..sirf aap jaisa shabdankan, mere jaisi kar na paye!
बेहतरीन होने की जिद में
चप्पलें घर पर ही भूल जाना,
खींचना सौ किलो साँस, बाँटना शक्कर, देखना अख़बार।
हो जाना अंधा और खराब,
बिगड़ना जैसे कार,
भींचना मुट्ठी और गोली मारना,
सच बोलना और खाना जहर।
नोट करने लायक बात..
शहर से बाहर आकर
अपने चश्मे और मतलब आँखों में लौट जाना।
माँगना माफ़ी।
चूमना और रोते जाना।
सबकुछ तो कह दिया...
bahut sundar !!!!!!!!
gaurav ji
sabse pahle to main maafi chahunga ki main ab tak aapke blog par pahunch kyon nahi paaya ...
ab regularly aate rahunga .. maine bahut der se aapki bahut si kavitaye padhi hai .. bhai mai to nishabd rah gaya ... kya kahun ..itni shashakt abhivyakti bahut dino ke baad kahin dekhi hai ..mera salaam kabul kare apni lekhni ke liye ...
aabhar
vijay
- pls read my new poem at my blog -www.poemsofvijay.blogspot.com
gaurav ji
sabse pahle to main maafi chahunga ki main ab tak aapke blog par pahunch kyon nahi paaya ...
हर शब्द में गहराई, बहुत ही बेहतरीन प्रस्तुति ।
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