गोल घूमता आकाश,
उजाला और ईमान,
मेरा खत्म होना, शुरू होना, तुम्हारा माँगना पानी,
देर और डर होना,
हम चले आते हैं ऐसे
जैसे जाना जाना न हो, हो श्मशान, ज्वालामुखी, घोड़ा आखिरी या ईश्वर ख़ुद।
बेहतरीन होने की जिद में
चप्पलें घर पर ही भूल जाना,
खींचना सौ किलो साँस, बाँटना शक्कर, देखना अख़बार।
हो जाना अंधा और खराब,
बिगड़ना जैसे कार,
भींचना मुट्ठी और गोली मारना,
सच बोलना और खाना जहर।
करारे परांठे और किताबें खाना,
बेचना दरवाजे, तोड़ना खिड़की,
घर होना या कि शहर,
तुम्हारी बाँहों में नष्ट होना,
जैसे होना स्वर्ग, लेना जन्म, माँगना किताबें, देखना जुगनू और बार बार वही आकाश।
शहर से बाहर आकर
अपने चश्मे और मतलब आँखों में लौट जाना।
माँगना माफ़ी।
चूमना और रोते जाना।
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चूमना और रोते जाना |
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जहां से सड़क शुरू होती थी |
जहां से सड़क शुरू होती थी
वहां पहली दफ़ा मैंने जानी
कोई राह न बचने वाली बात
और यह कि मजबूर होना किसी औरत का नाम नहीं है।
जब सब मेरे सामने थे
तब मैं रुआंसा और कमज़ोर हुआ
और शोर बहुत था
कि गर्मियां आती गईं गाँव के न होने पर भी।
भूल जाऊँ मैं अँधेरा, हँसी और डिश एंटिने,
पक्षियों से मोहब्बत हो तो जिया जाए,
हवास खोकर पानी ढूँढ़ें, मर जाएँ
और किसी बस में न जाना हो हमेशा अकेले।
वे सराय, जिनमें हम रुकते किसी साल
अगर हम जाते कहीं और रात होती,
वे पहाड़, जिन पर टूटते हमारे पैर,
वे चैनल, जिन्हें प्रतिबंधित किया जाता और हम करते इंतज़ार,
वे चूहे, जो घूमते मूर्तियों पर सुनहरे मन्दिर में,
वे शहर, जिनमें रंग और सूरज हों, रिक्शों के बिना,
हम अगले साल धान बोते तुम्हारे खेत में
और उनमें वे सब हमारे दुख के साथ उगते।
अकाल हो विधाता!
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जब तुम पिक्चर देख रही थी |
सब मजेदार कहानियां तुम्हारे गर्भ में ही थी
और मैं जब उन्हें स्कूल लेकर गया
मार्च में रिक्शा पर अपने साथ,
तब बहुत हवा थी, सूरज सूखता था, गुलाबी फ्रॉक पहनती थी लड़कियाँ
और मर जाने का मन करता था।
दीवारों का रंग अमीर था
और मैं भूलता गया तुम्हें याद रखना।
मैं सरल रेखाएँ, ज्यामिति के नियम, ठंडी कुल्फियाँ,
बिना दर्द की आँखें,
आक के पौधे
और बचपन के छिछोरे अपमान भी भूला।
मैं भूला ऊबने के अर्थ,
बेबस और ध्वस्त होना भी।
कुर्बान होने के खयाल के साथ साथ
मैं भूला पेट का भीतर तक सिकुड़ जाना,
भरना साँस,
माँगना मोहलत और माफ़ी।
सुबह से बुझा जाता है हौसला,
यूँ होता है कि कुछ नहीं होता।
याद नहीं आता कि
प्यार किया था और रोए थे एक गँवार दिन।
जिस कहानी पर मेरा दिल
महंगे सेब सा खिलता था,
उसे धो धोकर निचोड़ा मैंने
और गाली खाई (या मार?)।
वे बच्चे
जो तूफ़ान में अनाथ हुए थे,
जब तुम पिक्चर देख रही थी,
मैं उन्हें जन्म देना चाहता था।