हम बेसुरे दिनों में
आसमान की ओर चेहरा कर तोड़ते हैं शीशे।
इस तरह हमने आईनों को सिखाया है
थोड़ा तमीज़दार और सुन्दर होना।
आकाश किसी बासी दिन में
मुझसे शरण माँगता है।
मुझे थोड़ा गर्व होता है,
आती है बहुत सारी गुब्बारे सी नींद।
जब मुझे बुखार हुआ
तब मैं जन्म लेना चाहता था।
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7 पाठकों का कहना है :
ओर मै ये सोचता हूँ के सारे आइने सुन्दर क्यों नहीं होते ...
Bada kathin hai ise samajhna. kuch simple bhi chahiye.
ये बुखारी भी कमाल है..
जीवन में बहुत बार ऐसा होता है जब हमारा विश्वास टूटता है ,कोई साथ छूटता है..आस्था को ठेस लगती है.
मगर यही अनुभव नये सीरे से जीना सीखते हैं.
औरों की ही नहीं खुद की पहचान भी बुरे समय में होती है.
उम्दा रचना .
ये बुखार सीरिअस तो नहीं?...
hamesha ki tarh 1 or khoobsurat rachna..
Bahut KHoobsoorat..Sir
Pranam Sweekar karen
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