तुम जब ट्रेन में उन्हें घूरते हो
उनके चरित्र की थाह पाने को
या कहा जाए कि
खोजते हो एक इशारा, एक दृष्टि
या इस तरह एक अदद मौका उन्हें क्रूरता से भोगने का
तब वे किसी एक दिशा की ओर लगातार ताक रही होती हैं
और पूर्व नहीं है वह दिशा,
सूरज नहीं है वहाँ।
तुम अँधेरा पोत देते हो
उनके सुनहरे गालों पर,
उनके सपनों के कपास पर
छिड़क देते हो कोयला।
मुश्किल दिनों में वे लपककर आती हैं भूख की तरह
और परीकथाएँ सुनाती हैं अनंत।
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10 पाठकों का कहना है :
बहुत अच्छा व सही लिखा है। घूरना संसार की आधी आबादी को असहज करने का सरलतम उपाय है।
घुघूती बासूती
bahut hi achchi lagi yeh kavita.....
mahfooz...
तुम अँधेरा पोत देते हो
उनके सुनहरे गालों पर,
दिशा भ्रम की स्थिति मे जी रहे है लोग और आवरण को कवच समझ कर खुद को महफूज मान लेते है.
सच को सूरज दिखा दिया
बहुत सही लिख दिए भैया
सच और सिर्फ सच
sundar rachna..
waah waaah :)
बहुत सही लिखा है .. अच्छी अभिव्यक्ति !!
मुश्किल दिनों में वे लपककर आती हैं भूख की तरह
और परीकथाएँ सुनाती हैं अनंत।
तुम यार गजब हो.......
"तुम जब ट्रेन में उन्हें घूरते हो
उनके चरित्र की थाह पाने को
या कहा जाए कि
खोजते हो एक इशारा, एक दृष्टि
या इस तरह एक अदद मौका उन्हें क्रूरता से भोगने का"
sach likh diya tumne..na jane kanha se sonch lete itna kuch..
sachmuch gajab ho gourav bhai....
तुम जब ट्रेन में उन्हें घूरते हो
उनके चरित्र की थाह पाने को
या कहा जाए कि
खोजते हो एक इशारा, एक दृष्टि
या इस तरह एक अदद मौका उन्हें क्रूरता से भोगने का
तब वे किसी एक दिशा की ओर लगातार ताक रही होती हैं
और पूर्व नहीं है वह दिशा,
सूरज नहीं है वहाँ।
बेहद मार्मिक भी है और दारुन भी ....एक दिशा मे उसका ताकना जहा एक दिशा भी नही है और ना ही सुरज है वहा उसके हिस्से की ................न जाने कितने अर्थ दे जाती है आप्के द्वारा लिखी गई किसी भी रचना की सिर्फ एक एक पंक्ति ..........कमाल गज़ब का जो एहसास दे जाती है सो अलग .........
मुश्किल दिनों में वे लपककर आती हैं भूख की तरह
और परीकथाएँ सुनाती हैं अनंत।
वाह ..................
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