वे तुम्हारी पागल रातों में
तलाशती हैं अपनी छूटी हुई लिपस्टिक
और यकीन करती हैं, तबाह होती हैं
वे चली जाना चाहती हैं
और लौट आना भी,
वे किसी गहरे रंग की पतंग पर बैठकर
परी या माँ बनने को
गायब हो जाना चाहती हैं दरअसल
और तुम उन्हें बताते हो कि
उन्हें डॉक्टर बन जाना चाहिए
और उस उजड़ी हुई महानता में
तुम उन्हें खूबसूरती से धकेलते हो बार बार
जहां तुम बीमार हो
और तुम्हें खेलना है उनकी लटों से,
शिकायतें करनी हैं
और तुतलाना है.
एक उदास रात में
तुम खोलते हो अपने काले रहस्य
और अपनी अनिद्रा के चुम्बनों से उन्हें जला डालते हो,
फिर एक सुबह तुम घर से निकलते हो
पूर्व के जंगलों की ओर
और महान हो जाते हो.
वे अकेली जलाती हैं चूल्हे,
काली पड़ती हैं
और माँ हो जाती हैं.
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21 पाठकों का कहना है :
wah! bahut hi achchi kavita........
वे अकेली जलाती हैं चूल्हे,
काली पड़ती हैं
और माँ हो जाती हैं.
in lines ne to dil chhoo liya........
विस्मयकारी कविता गौरव. पढ़कर जोश सा आ गया.
कविता ने अपने अर्थ संप्रेषण में अनेक आरोह-अवरोह निर्मित किये हैं । विस्मयकारी अभिव्यक्ति । धन्यवाद ।
वे अकेली जलाती हैं चूल्हे,
काली पड़ती हैं
और माँ हो जाती हैं.
jab bhi tumhari kavitaayen padhti hoon to lagta hai ki aisa kaise soch lete ho tum aur fir kaagaj par bhi utaar daalte ho.kabhi tumhari dhar kam nahi hoti.
बड़ी दूर की गोटी होता है तुम्हारा लिखा हुआ..
वे तुम्हारी पागल रातों में
तलाशती हैं अपनी छूटी हुई लिपस्टिक
और यकीन करती हैं, तबाह होती हैं
वे चली जाना चाहती हैं
और लौट आना भी,..............woman pshychology...........endless love
जहां तुम बीमार हो
और तुम्हें खेलना है उनकी लटों से,
शिकायतें करनी हैं
और तुतलाना है.
amazing ................
वे अकेली जलाती हैं चूल्हे,
काली पड़ती हैं
और माँ हो जाती हैं.
wordless.................
भाई आपको पहली बार पढ़ रहा हु , आपने तो गजब की बात लिखी है
बढि़या।
वैसे ये महान बनने वाला काम कभी ख़त्म हो सकेगा या नहीं....।
bahut badhiyaa...hamesha sa
फिर एक सुबह तुम घर से निकलते हो
पूर्व के जंगलों की ओर
और महान हो जाते हो.
वे अकेली जलाती हैं चूल्हे,
काली पड़ती हैं
और माँ हो जाती हैं.
perfact climax..
बहुत खूब!
हमेशा की तरह एक खास गौरव इश्टाइल की कविता...सच को उधेड़ती ...सी again a masterpiece...
वे अकेली जलाती हैं चूल्हे,
काली पड़ती हैं
और माँ हो जाती हैं.
BAHUT UMDA LIKHA GAURAV......
bahut badiya......bahut hi acha likhte ho gourav bhai
वे अकेली जलाती हैं चूल्हे,
काली पड़ती हैं
और माँ हो जाती हैं.
वे अकेली जलाती हैं चूल्हे,
काली पड़ती हैं
और माँ हो जाती हैं.
these lines are awesome bro....keep going....best of luck!
अंतिम पंक्तियों में सच का सागर समाया हुआ है। अच्छी सोच और उससे भी अच्छे शब्द।
बधाई स्वीकारो,
विश्व दीपक
फिर एक सुबह तुम घर से निकलते हो
पूर्व के जंगलों की ओर
और महान हो जाते हो.
वे अकेली जलाती हैं चूल्हे,
काली पड़ती हैं
और माँ हो जाती हैं.
कुछ अलग था इस बार......पहले से बेहतर्
भैये तुमने तो झंडे गाड़ दिए
Superb !!
Bahut gahre bhaav.
Think Scientific Act Scientific
एक इम्पेकेबल और एक्स्प्लोसिव कविता के लिये बधाई..भाव और कला दोनो मे मास्टरस्ट्रोक सी इस कविता के लिये कोई भी तारीफ़ निरर्थक और कोई भी शब्द कुफ़्र होगा..बस सल्यूट ही कर सकते हैं हम आपकी कलम को..अद्भुत...
एक कहानीकार इतना खुबसूरत कवि भी होगा ये सोचा न था ...................गज़ब.
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