नाराज़ होकर तुमने
नीली रोशनाई बिखेर दी है हवा में, आकाश में।
डूबते हुए आसमान में
तिनका भर सूरज
झुककर तुम्हारी आँखें चूमता है।
तुम्हारी नीली आँखों की मुट्ठियों में बंद है
खिड़कियों की हँसी,
शादियों का कोलाहल
और मेरी जान का तोता।
तुम रेलगाड़ियों, अजानों
या स्कूल की प्रार्थनाओं में छिपकर बैठी हुई हो,
तुम्हारे बालों में गुँथी आती हैं मेरी रोटियाँ।
मैं तुम्हें खा जाना चाहता हूं।
तुम गाना लोरी
और मेरे साथ सोना।
पीले पोस्टकार्डों पर लिखकर भेजना
अपने गीले होठ,
चाँदनी रातों में नाव बनना,
कुहरे में धूप।
सूखे पेड़ों की डालियों पर लेटकर
हम देर तक याद करेंगे अपना बचपन
और आँखें भरेंगे।
सुनो!
तुम,
जो समझती हो कि यह तुम्हारे लिए नहीं लिखा गया,
मैं सारे संसार से घृणा करना चाहता हूं
ताकि तुमसे कर सकूं
खट्टे दही सा अगाध प्रेम।
तुम्हारी आँखें नीली नहीं हैं,
याद है मुझे।
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12 पाठकों का कहना है :
आपका ये सामान वाकई लाजवाब रहा .....अच्छा लगा पढ़कर ....एक अजीब सा सुकून और अजीब से प्रश्न जाग उठे
मैं सारे संसार से घृणा करना चाहता हूं
ताकि तुमसे कर सकूं
खट्टे दही सा अगाध प्रेम।
sahi....aapki kavitayen padkar mera taste badal raha hain...ab main emotional aur bhavanatmak cheezen jyada padne laga hoon..dhanyavad!
bahut sunder abhivyakti hai bahut bahut badhai
वाह! बहुत अच्छी कविता है.
waah khata ishq dhahi sa aur wo ankhon mein band jaan ka tota,kyakehne,bahut achhi lagi aapki kavita,lajawab.
हमेशा की तरह बहुत भाव भीनी कविता।
Great..Outstanding!!
बहुत अच्छी रचना लिखी है......
नीली नहीं हैं ?
टेस्ट बदलने की बधाई हो गौरव!
नीली नहीं हैं शायद...याद तो ऐसा ही है..
ताकि तुमसे कर सकूं
खट्टे दही सा अगाध प्रेम।
ant tak mithas bani rehti hai phir to...
अद्भुत नीला सा अहसास हुआ पढकर।
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