तुम्हारी आत्मा में छेद हो गए हैं
और तुम बोलती हो तो
तुम्हारा बोलना डूब जाता है
(और यह प्रशंसा नहीं है)।
तुम्हारी आँखों में तमंचे हैं
जैसे तुम्हें झुटपुटे में लूटना है किसी को
आम के घने पेड़ों वाली सड़क पर।
तुम लूटती हो तो
कोई हल्का सा गीत गुनगुनाने का मन करता है।
हल्के गीतों ने बचाकर रखा है
बार बार किया जा सकने वाला प्रेम
और गुनगुनाना।
आओ कम्बल ओढ़कर
कम-ज़-कम एक तस्वीर ही खिंचवा लें
कि अपनी (माने अपनी अपनी) संतानों को गर्व से बता पाएँ हम
अपने अँधेरों को साझा करना,
एक खराब कविता लिखना
और रात के खाने का बंक मारकर
प्यार करना।
तुम नहीं हो तो
मेरे कलेजे में है एक डर
एक फ़ुटपाथी शौर्य
और एक सुस्ताती उदासीनता।
मैं बुरा नहीं हूं,
लेकिन मेरी भूख में मेरा पूरा संसार है
जिसे गोरी लड़कियों और मैकडोनाल्डीय बर्गरों ने बरगला दिया है।
डर को टॉफ़ी देकर बहकाया नहीं जा सकता,
डर चाहता है चाँद के चाँदी बन जाने की सुरक्षा,
डर निराकार है,
डर शाश्वत है,
डर ही है ईश्वर,
आसमान में है लम्बी आग,
तुम खो गई हो,
प्रेम के बिना जीना होता जा रहा है आसान,
उम्मीद पर टिकी है दुनिया
और यह दुनिया का सबसे ज़्यादा नाउम्मीदी भरा ख़याल है।
प्रेम के बिना जीना होता जा रहा है आसान!
कैसे भला?
सब बातें राज़ की हैं
इसलिए सब राज़दार ख़त्म किए जा चुके हैं।
धुंध में तसले में बैठकर नहाता है सूरज,
तुम्हें भीगे बालों में
देर तक छूटती रहती है कँपकँपी।
एक बात है
जिसे पूरी करने के लिए
फ़ोन काट देना बहुत ज़रूरी है,
एक बात है
जिसमें बसती है दुनिया की सारी ऑक्सीज़न।
सुनो,
यह आदमकद शीशों,
ऊबे हुए लोगों,
आलू के परांठों,
तिलिस्मी दरवाज़ों
और टीवी की दुनिया है।
यह एक दूसरा ही समय है
जब हमारी माँएं
हमारी प्रेमिकाओं की तरह हमें भूल गई हैं।
तीसरा समय जान ले लेगा हमारी।
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7 पाठकों का कहना है :
क्या बात है गौरव जी
इक अलग रंग से बुनी कविता,
मौलिक चिंतन, मज़ा आ गया पढ़ कर
vakai मज़ा आ गया, गौरव !
एक अजबसी परन्तु आकर्षित करने वाली बढ़िया कविता !
घुघूती बासूती
कविता है या कोई टोटका, जलन हो रही है
..........................
http://prajapativinay.blogspot.com/
एक बात है
जिसे पूरी करने के लिए
फ़ोन काट देना बहुत ज़रूरी है,
ye or esi he kuch baten tumhari kavitao ki jaan hoti hain
अब नहीं पढ़ेंगे आपको। पागल बना देते हैं आप।
आप सब का बेहद शुक्रिया।
और विनय भाई, तीसरा समय जिनकी जान ले लेने वाला हो, उनसे कैसी जलन? :)
शुक्ल जी, उम्मीद है कि आप इस पागलपन को झेलते हुए भी पढ़ते रहेंगे।
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