बहुत सर्दी लगती थी तो भी कुछ ओढ़ने का मन नहीं होता था। मन शराबी सा था और मुझे शराब पीना नहीं आता था। सुबह सुबह सूरज उंगली छुड़ाकर छिपने के लिए भागता था और फिर न जाने क्यों, मोड़ से लौट आता था। वह एक सुन्दर लड़की थी जिससे प्रेम करते हुए ठीक ठीक पता भी नहीं लग पाता था कि प्रेम उससे है या उसकी सुन्दरता से? फिर भी रोना आता था। सुन्दर होना अभिशप्त वरदान था। वैसे उसके होठों के ऊपर हल्का हल्का रोयाँ था, जो मुझे लगता था कि नहीं होना चाहिए। वह उबासी लेती थी तो उसका शरीर लय में नहीं रहता था। वह स्लीवलेस नहीं पहनती थी। मैं उसकी बगलें देखना चाहता था। वह बहुत हँसती थी, इसलिए मुझे ऐसा लगता था कि उसकी आत्मा हमेशा उसके हॉस्टल में छूट जाती होगी। मुझे अपने परफ़ेक्शनिस्ट होने की बदगुमानी से बेहद चिढ़ थी।
हम दोनों के बीच में मेरा आत्मसम्मान था जो चिथड़े चिथड़े कर दिया गया था। और मैंने तय किया कि सुन्दर लड़कियों से प्यार नहीं किया जाना चाहिए। ऐसा तय करते हुए गूगल पर खोजकर देखे गए कैटरीना कैफ़ और प्रियंका चोपड़ा के दर्जनों चित्र भी मेरे दिमाग में घूमते रहे।
स्त्री मेरे मन में शरीर होती जाती थी। मैं घंटों फ़ोन लेकर बैठा रहता था और एक ही बात सोचता था...किसे फ़ोन करूं कि कुछ आराम आए? ए से शुरु करके एक एक नम्बर और नाम देखता हुआ बार बार ज़ैड तक पहुँच जाता था। मेरे मोबाइल में दो सौ छियानवे नम्बर थे और एक भी ऐसा नहीं था जिससे बात करके उस बेचैनी के चले जाने की उम्मीद हो। क्या मैं किसी और दुनिया में किसी और का फ़ोन लेकर बैठा रहता था? क्या किसी भी दुनिया को अपने किसी अवांछित व्यक्ति से भी इतना दूर हो जाने का, इतना क्रूर हो जाने का हक़ था?
यह बहुत भयावह था कि आप दिन भर रोएँ और शाम को सड़क पर टहलने निकलें तो कोई भी न पूछे कि क्या हुआ? कुत्ता भी नहीं। कूड़ादान भी नहीं।
यह इस बात को चार बार लिखे जाने जितना त्रासद था।
यह याद आता था कि शायद किसी ने कभी कहा तो था कि परेशानी हो या न भी हो, किसी भी वक़्त मुझे फ़ोन कर लेना। लेकिन किसने कहा था, यह याद नहीं आता था। मैं दीवारों पर सिर पटकता था। रात रोज़ हो जाती थी। मेरा एकांत मुझे महानता का अहसास करवाता था। मेरा एकांत मुझे मारे जाता था। लोग अलार्म भरते थे और सो जाते थे।
मैं एक सैकेंड हैंड बंदूक खरीदना चाहता था और ठीक ठीक दाम में चार छ: गोलियां। मैं उसकी आँखों के बिल्कुल ऊपर, माथे के बीच में बनते गोल गोल भँवर में गोली मारना चाहता था। मैं उससे इतना प्यार करता था कि उसे अपने सामने मरते हुए देखे बिना जी नहीं सकता था। प्रेम मुझे हिंसक बनाता था।
कुत्ते भौंकते थे। ‘ओए लकी लकी ओए’ में एक गाना बजता था...
जुगनी चढ़दी एसी कार
जुगनी रहंदी शीशे पार
जुगनी मोहमोहणी नार
ओदी कोठी सैक्टर चार।
जुगनी हँसदी वे हँसदी...
...और जुगनी ठठाकर हँसती थी। हॉल में ठहाके गूँजते थे और मुझे लगता था कि पूरा देश रोता है।
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हँसती हुई जुगनी |
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तुम्हारा प्रायश्चित |
छत पर धूप को सेकना
तुम्हें झुठलाने जैसा है,
तुम्हें सच मानना है आत्महत्या जैसा।
तुम्हारा आँखें बन्द कर लेना
डूब जाने जैसा नहीं,
रात जैसा है,
तुम्हारा देर तक अलविदा के पत्थर पर खड़े रहना
तुम जैसा नहीं,
सड़क या दुकान या शहर जैसा है।
जिस तरह फूटते हैं गुब्बारे,
शाम होती है,
पेड़ देते हैं फल,
किताबें खो जाती हैं,
रेडियो बजता है,
दरवाजों पर ताले लगे होते हैं,
फ़ोन मिलते हैं स्विच्ड ऑफ़,
साँस नहीं आती,
सोमवार आते हैं,
इसी तरह किसी दिन
घर से निकलकर चलता चला जाऊँगा मैं
और कभी नहीं लौटूंगा।
मेरा इंतज़ार किया जाए।
यह तुम्हारा प्रायश्चित हो।
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तीसरा समय जान ले लेगा हमारी |
तुम्हारी आत्मा में छेद हो गए हैं
और तुम बोलती हो तो
तुम्हारा बोलना डूब जाता है
(और यह प्रशंसा नहीं है)।
तुम्हारी आँखों में तमंचे हैं
जैसे तुम्हें झुटपुटे में लूटना है किसी को
आम के घने पेड़ों वाली सड़क पर।
तुम लूटती हो तो
कोई हल्का सा गीत गुनगुनाने का मन करता है।
हल्के गीतों ने बचाकर रखा है
बार बार किया जा सकने वाला प्रेम
और गुनगुनाना।
आओ कम्बल ओढ़कर
कम-ज़-कम एक तस्वीर ही खिंचवा लें
कि अपनी (माने अपनी अपनी) संतानों को गर्व से बता पाएँ हम
अपने अँधेरों को साझा करना,
एक खराब कविता लिखना
और रात के खाने का बंक मारकर
प्यार करना।
तुम नहीं हो तो
मेरे कलेजे में है एक डर
एक फ़ुटपाथी शौर्य
और एक सुस्ताती उदासीनता।
मैं बुरा नहीं हूं,
लेकिन मेरी भूख में मेरा पूरा संसार है
जिसे गोरी लड़कियों और मैकडोनाल्डीय बर्गरों ने बरगला दिया है।
डर को टॉफ़ी देकर बहकाया नहीं जा सकता,
डर चाहता है चाँद के चाँदी बन जाने की सुरक्षा,
डर निराकार है,
डर शाश्वत है,
डर ही है ईश्वर,
आसमान में है लम्बी आग,
तुम खो गई हो,
प्रेम के बिना जीना होता जा रहा है आसान,
उम्मीद पर टिकी है दुनिया
और यह दुनिया का सबसे ज़्यादा नाउम्मीदी भरा ख़याल है।
प्रेम के बिना जीना होता जा रहा है आसान!
कैसे भला?
सब बातें राज़ की हैं
इसलिए सब राज़दार ख़त्म किए जा चुके हैं।
धुंध में तसले में बैठकर नहाता है सूरज,
तुम्हें भीगे बालों में
देर तक छूटती रहती है कँपकँपी।
एक बात है
जिसे पूरी करने के लिए
फ़ोन काट देना बहुत ज़रूरी है,
एक बात है
जिसमें बसती है दुनिया की सारी ऑक्सीज़न।
सुनो,
यह आदमकद शीशों,
ऊबे हुए लोगों,
आलू के परांठों,
तिलिस्मी दरवाज़ों
और टीवी की दुनिया है।
यह एक दूसरा ही समय है
जब हमारी माँएं
हमारी प्रेमिकाओं की तरह हमें भूल गई हैं।
तीसरा समय जान ले लेगा हमारी।