जैसे पढ़ते पढ़ते लोग बन जाते हैं किताब,
जैसे नाचते नाचते लोग बन जाते हैं ओडिसी,
जैसे खरीदते खरीदते बाज़ार,
जैसे ठोकते पीटते औजार,
जैसे टीवी देखते देखते चित्रहार,
जैसे ड्राइव करते करते लोग बन जाते हैं कार,
तुम जमकर बन गई हो वनीला आईसक्रीम,
नींद, बेरुखी, फूल
या जैसे उदास सा बिहार।
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3 पाठकों का कहना है :
बहुत अच्छा लिखते हें आप। यूं ही लिखते रहें।
गौरव, मुझे लगता है किसी का नींद, बेरुखी, बाजार और आईसक्रीम बन जाना बिहार बनने के मुकाबले कुछ ज्यादा ही खतरनाक है... दरअसल बिहार बनने का अर्थ काफी गहरा और उम्मीद भरा है। बिहार बनने का मतलब हर कुछ खोने के बाद नए सिरे से निर्माण है... इसलिए आपकी ‘कोई’ अगर बिहार बन चुकी है तो यूं समझिए कि एक उम्मीद की किरण है कि एक बार कभी पुनर्निर्माण जरूर होगा। एक बार फिर उदासी छंटेगी...।
Likhte likhte kavi bante bhi dekha hoga tumne kisiko... shayad khud ko.. shayad sabko.
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