1
छत को गिर जाना है किसी दिन
अचानक टूटकर मेरे ऊपर
और जब रात भर गोल गोल घूमती है धरती
मेले वाले बड़े झूले की तरह
(मैं नहीं मानता गोल गोल घूमना
मगर कोई इसे सिद्ध करने के लिए
फाँसी चढ़ गया था शायद कभी।
एक बलिदान पर सौ झूठ हों सच।
आमीन!)
तो उस अचानकता को बचाए रखने के लिए
यह छत टस से मस नहीं होती।
तुम फ़ोन पर मुझसे कहती हो – अपना ख़याल रखना,
मुझे याद आता रहता है गार्नियर का विज्ञापन।
बहुत सारी तुम भी।
जो टीवी देख सकते हों,
कम से कम उन्हें तो नहीं करना चाहिए था
किसी से प्रेम।
२
आज रात बर्फ़ गिरेगी दिल्ली में,
चाँद जम जाएगा
या कम्बल ओढ़कर करता रहेगा प्यार।
काश कि बर्फ़ न गिरे,
इतनी गर्मी हो कि चाँद आसमान के बिस्तर से उठकर
आ खड़ा हो छत पर,
मैं दूर खेतों में खड़ा झलता रहूं साँसों का पंखा।
चाँद कुँवारा सोए
और कुँवारा जग जाए
बस एक रात और
हाय रब्बा!
[+/-] |
बस एक रात और हाय रब्बा! |
[+/-] |
बीच के लोग रहेंगे देर तक ज़िन्दा |
समय निश्चित रूप से
बौराए हुए आत्मघाती शोर का है
लेकिन सन्नाटा भी लगातार चुन चुन कर
निगल रहा है अपने शिकार।
बीच के लोग रहेंगे
देर तक ज़िन्दा।
रसोई में सजे भगोने में
घूम रही हैं दो मकड़ियाँ,
या शायद एक।
निश्चिंत होकर सो जाना
गाँव से आए ताऊजी के
देर रात दरवाजा पीटने पर
दुबारा आटा गूंथती माँ के मुस्कुराने जितना
अवसाद भरा झूठ है।
न खुलने के सामाजिक अपराध पर
देर रात, सुबह तड़के या भरी दोपहर में
पिटते रहना
दुनिया भर के बन्द दरवाजों की नियति है।
इतना आहिस्ता रोती हो तुम
कि मुझे आती है हँसी,
रोना भी।
इतने गहरे तक पैठा हुआ है
कम्बख़्त मेरी पैदाइश का शहर,
उसके लोग,
उसकी लड़कियाँ
कि उनसे नफ़रत करना चाहूं
तो मर जाने का मन करता है,
प्यार करता रहूं
तो पागल हो जाऊँ।
माँ की एक सहेली थी कक्षा आठ में
जिसका आखिरी इम्तिहान से ठीक पहले ब्याह हो गया था,
जिससे मिलने माँ गई थी
भादो की किसी दूज को शायद
मामा के साथ ताँगे में बैठकर
और लौटते हुए रोती रही थी।
मैंने नहीं देखी माँ की कोई सहेली कभी,
मुझे क्यूं याद आती है वो
सीधी आँख के नीचे के तिल वाले
अपने पूरे चेहरे समेत?
क्यों होता है
मीना कुमारी की तरह
तकिए में चेहरा भींच कर रोते रहने का मन?
कंधे पर रेडियो रखे
एक सफेद कुरते वाला बूढ़ा
रात के अँधेरे में दिख जाता है
हड़बड़ाया, तुड़तुड़ाया, नाराज़, परेशान सा
जैसे सरकारी स्कूल का कोई मास्टर
लड़ आया हो अपने हैडमास्टर से
नाक पोंछते बच्चों के सामने चिल्ला चिल्ला कर,
खिंच गई हों उसके पेट की नसें,
कराहता रहा हो शाम भर
या तबादले के लिए मिलने गया हो एम एल ए से
और उसे मिली हों माँ बहन की गाली,
शायद खड़ा सिर झुकाए हाँ हूँ करता रहा हो,
शायद मुड़ने से पहले फिर से नमस्ते भी की हो,
शायद रोया भी हो घर आकर
और उसकी पत्नी ने अपने बच्चों को न बताया हो
या बस खाट पर पड़ा
सुनता रहा हो रात तक
प्रादेशिक समाचार,
बच्चे खेलते रहे हों क्रिकेट।
नकली घरघराती आवाज़ में
बहुत हँसाया करते थे मेरे पिता
जब कहते थे
”ऐसे बोलो, जैसे मैं रेडियो की तरह बोलता हूँ।“
आखिर पूछ लो ना मुझसे।
कुछ बात है अनकही
जो इतनी भारी है कि
रात भर नहीं बदलती करवट,
चूं भी नहीं करता दुख
कि नाखूनों में फँसा कर उखाड़ लिया जाए।
मेरे नाम से कोई तो रखता होगा व्रत,
नहीं तो दिल्ली में इतने दिन
कैसे ज़िन्दा रह सकता है कोई ख़ामोश नास्तिक आदमी?
[+/-] |
प्यार, पूर्वाग्रह और लड़कियाँ |
शराब पीकर झूमती हुई लड़की
बेहद मासूमियत से अंग्रेज़ी में कहती है मुझसे
कि मुझसे प्यार करती है वह।
मैं शहर से पूछता हूं कि
क्या किया जा सकता है
तुम्हारी लड़कियों पर भरोसा?
शहर में शोर है,
चुप चुप सा है शहर।
मुझे लगता रहा है कि
इस कमज़ोर सी बेमुरव्वत ज़िन्दगी में
लड़कियों के सहारे पर बड़ी उम्मीदों के पुल बाँधना
अपने आप से किया गया
एक शरारती किस्म का मज़ाक है।
लड़कियाँ होती हैं इतनी अबूझ,
इतनी अनिश्चित
कि अगले ही पल बौखला पड़ने से पहले
वे रुमाल से पोंछ रही होती हैं लिपस्टिक
या गुनगुना रही होती हैं
कोई छद्म रोमांटिक गाना।
लड़कियों को इतनी प्यारी होती है खुशी
कि उसके साथ नहीं जी पाता
प्यार का सनातन दुख।
उन्हें पसंद होते हैं
मज़ाकिया लड़के
मसलन अक्षय कुमार
या वे शायद प्यार कर सकती हैं
डेरीमिल्क से भी
बशर्तें वह हँस सकती हो।
प्यार एक बहुत गंभीर मसला है
और सच में उसके बारे में बात करने पर
ऊबने लगती हैं अधिकांश लड़कियाँ।
उन्हें भले लगते हैं
जादुई सपने,
इन्द्रधनुषी रोमांच,
गुदगुदे बच्चे,
टेडी बियर,
चॉकलेट
और लाल गुलाब।
कभी कभी कुछ और चीजें भी।
आसमान उदास है,
शहर को नहीं है फ़ुर्सत,
शराब पीकर झूमती हुई लड़की
जा चुकी है अकेली अपने घर
और हैं बहुत से पूर्वाग्रह,
लेकिन फिर भी
मेरा जोरों से मन है कि प्यार किया जाए।
मैं सड़क के उस पार बैठी
एक अनजान मासूम सी लड़की से पूछता हूं
कि चलोगी फ़िल्म देखने?
प्यार एक बहुत गंभीर मसला है।
इंटरवल में एक दूसरे के हाथों से
पॉपकॉर्न खाते हुए
हम बात करते रहते हैं
करण जौहर के कालजयी सिनेमा की।