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हम दोनों अपनी अपनी माँ से इतने नाराज़ थे कि आत्महत्या कर सकते थे

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कितना बोलती हो सुनन्दा!

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जब भी सिगरेट जलती है...

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फुसफुसाना, बोलना या चीख पड़ना बहुत ज़रूरी था

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मैं जब भी फ़िल्मों की बात करता था तो वे सब शाहरुख को ही ले आते थे।

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सपनों का मर जाना सामाजिक हर्ष का विषय है