यह सब लिखने में वक़्त क्यों गँवाना पड़ा, यह जानने के लिए इन दो लिंक को देख लीजिए।
http://merasaman.blogspot.com/2008/07/blog-post_22.html
http://bal-kishan.blogspot.com/2008/07/blog-post_22.html
शायद जयशंकर प्रसाद ने ही एक बार कहा था कि मैं रिक्शे वालों के लिए नहीं लिखता। मैं न ही जयशंकर प्रसाद हूं, न ही बन सकता हूं और न ही बनना चाहता हूं। लेकिन गौरव सोलंकी नामक साधारण व्यक्ति होते हुए भी मुझे पूरा अधिकार है कि मैं कठोरता से कहूं कि मैं किसके लिए लिखता हूं और किसके लिए नहीं और सबसे पहले, मैं कम से कम उन बालकिशनों या बालमुकुन्दों के लिए नहीं लिखता जिनके लिए कविता चाय में डुबोकर या बिना डुबोए खाई जा सकने वाली डबलरोटी से ज्यादा कुछ नहीं है। मैं किसी को अपना लिखा पढ़ने का न्यौता नहीं दे रहा और मैं भी किसी को जाकर पढ़ता हूं तो बिना न्यौते के जाता हूं। पसन्द आता है तो बार बार बिना बुलाए जाता हूं और पसन्द नहीं आता तो भी दर्ज़नों लोगों के ब्लॉग पर जाकर नहीं लिखता कि कविता या साहित्य के नाम पर लगातार बकवास क्यों लिख रहे हो? और न ही उन तीस बुद्धिजीवी प्रशंसक टिप्पणीकारों से कहता हूं कि तारीफ़ करके बदले में कमेंट पा लेने से क्या हो जाएगा?
जो लोग ऐसा लिख रहे हैं और झूठी वाहवाही पाकर अपनी पत्नी, बच्चों या रिश्तेदारों को अपनी रचनाओं पर आई टिप्पणियों की संख्या दिखाकर खुश हो रहे हैं, मैं नहीं जानता कि उनके जीवन अथवा लेखन का उद्देश्य क्या है। लेकिन मुझे अपने लेखन और जीवन, दोनों के उद्देश्य बहुत अच्छे से मालूम हैं और मैं नहीं चाहता कि डबलरोटी वाले लोग उन्हें छूकर भी गुजरें।
बालकिशन, आपको मेरा लिखा समझ में नहीं आता तो आपकी गलती नहीं है। मैं बता सकता हूं कि आपको और क्या क्या नहीं समझ आएगा। आपको सलमान रश्दी या विनोद कुमार शुक्ल का लिखा समझ नहीं आएगा, आपको सत्यजीत रे की फ़िल्में समझ में नहीं आएंगी, आपको मक़बूल फ़िदा हुसैन के चित्र समझ में नहीं आएंगे, अनुराग कश्यप की ‘नो स्मोकिंग’ या इस साल का ऑस्कर जीतने वाली ‘नो कंट्री फॉर ऑल्ड मैन’ भी आपको समझ नहीं आएगी। लेकिन आपको समझ में न आने से किसी को कोई फ़र्क नहीं पड़ता क्योंकि वे लोग भी आपके लिए नहीं बना रहे हैं। उन्हें देखने पढ़ने समझने वाले अलग लोग हैं, जो लाफ़्टर चैलेंज के चुटकुले नहीं सुनते सुनाते।
मुझे भी दुनिया की लाखों करोड़ों चीजें समझ नहीं आती। हर व्यक्ति की अपनी अलग सीमाएँ होती हैं, इसलिए आपकी भी हैं। बेहतर होता है कि बिना किसी के कहे और बिना किसी के सामने फ़जीहत करवाए समय रहते उन सीमाओं को पहचान लिया जाए और उन्हें पार करने की कोशिश न की जाए।
मैं जो भी, जैसा भी लिखता हूं, ब्लॉग उन चीजों के लिए बहुत अच्छी जगह नहीं है और यदि मैं माँग और उत्पादन के सिद्धांत को मानूं तो मुझे ब्लॉग लिखना बन्द कर देना चाहिए। लेकिन फिर भी कुछ लोग हैं, जिनके लिए और सबसे ज्यादा अपने लिए लिख रहा हूं। मैं समाजसेवी नहीं हूं कि औरों के लिए लिख पाऊं। अगर किसी को भी मेरा लिखा समझ नहीं आता तो मुझ पर अपना कीमती वक़्त बर्बाद न करे। यदि आपके लिए साहित्य उस डबलरोटी से हल्का सा भी ज्यादा कुछ है तो ऊपर लिखा कुछ भी आपके लिए नहीं है। आप मुझे पढ़िए और भला बुरा जैसा भी लगे, बताइए।
Peace
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22 पाठकों का कहना है :
निःसंदेह आप आहत हैं, पर ये लेख जरूरत से ज्यादा कड़वा और दम्भ से भरा लगता है. ओवर स्टेटमेंट की भरमार है इसमें.
बालकिशन जी के लेख पर टिप्पणियां पढी हों तो समझ गए होंगे कि बाकी लोग इस बारे में क्या सोचते हैं.
ज्यादा क्या कहें, अभी आप गुस्से में हैं. जब कुछ क्रोधाग्नी शांत हो तो अपने लिखे को फ़िर से बांचियेगा. शायद आपको ख़ुद पसंद नहीं आए.
दोनों लिक साथ देकर बढ़िया काम किया आपने. वैसे मजे की बात है, अगर आपकी कविता पहले पढ़कर फ़िर बालकिशन जी की पढी जाए तो वो आपकी बढ़िया पैरोडी लगती है. और अगर बालकिशन जी को पहले पढ़कर फ़िर आपको पढ़ें तो ये उनकी पैरोडी.
में पूरी तरह बालकिशन जी के साथ हूँ.
ghost buster जी, यह लिखने और पोस्ट करने में बहुत अंतराल रहा है, इतना कि इसे तात्कालिक क्रोधाग्नि कहना अपने आप को दिलासा देने जैसा होगा।
जहाँ तक दम्भ से भरा लगने की बात है तो आप जो भी मानें, मैं इसे अपने आत्मसम्मान को परिभाषित करना मानता हूं।
आप बालकिशन जी के साथ बैठकर चाय पीते हुए पैरोडी पढ़िए। आप उनके साथ रहिए या किसी और के साथ, मुझे फ़र्क नहीं पड़ता। यह पोस्ट आपका साथ पाने के लिए लिखी भी नहीं गई।
gaurav you should be more mature, why wasting your time in nonsense stuff...anyway...just leave it ...
गौरव जी, लगता है आप बहुत परेशान हैं. परेशान मत होइए. अगर किसी ने कोई ऐसी टिपण्णी कर दी जो आपको पसंद नहीं आई तो उसे नकार दीजिये. आपको अपने लेखन पर गर्व है सो लिखते रहिये. अगर आप नहीं चाहते कि हर ऐरा-गैरा आपके ब्लाग पर आए तो अपने ब्लाग को अपने पसंदीदा टिप्पणीकारों के लिए सुरक्षित कर दीजिये. बस हो गई परेशानी हल.
पहली बात। आप सबसे अनुरोध है कि बात को ठंडे गर्म दिमाग की बात कहकर सुलझाने की कोशिश न करें।
और बालकिशन जी, मैंने यह नहीं कहा कि मुझे समझने वाले लोग नहीं हैं। मैंने यही कहा कि ब्लॉग जगत में साहित्य पढ़ने समझने वाले कम लोग हैं और उनमें आप तो बिल्कुल नहीं हैं। और मुझे आपके मशविरे की जरूरत नहीं कि मैं अपना ब्लॉग लिखूं या नहीं।
बालकिशन जी आप भी नाराज ना हो , और गौरव जी आप भी, ये जगह मस्ती लेने और दोस्ती बढाने के काम मे प्रयोग कीजीये , छेडिये भी जवाब भी दीजीये पर इस तरह तल्खी भरे अंदाज मे नही , मै भी किसी की भी पोस्ट उठाकर उसका पोस्टमार्टम कर डालता हू.और ऐसा ही मेरे साथ भी होता है , लेकिन ये सब उस पोस्ट के लेखक के साथ आतमीयता के कारण ही होता है , या वो पोस्ट हमे इतनी अच्छी लगे तभी . लेकिन मुझे लग रहा है कि यहा बेवजह एक ऐसे ही मामले को तूल; देकर कडुआहट को निमंत्रण दिया जा रहा है. गौरव जी मेरी आपसे गुजारिश है इसे धनात्मक ले (पोजिटिव)और तुरंत ही इसका असर भी देखे, आप पायेगे आने वाले वक्त मे आप और बालकिशन जी मिलकर दूसरो की पैरोडिया बन रहे होंगे , कडवाहट बढाने से बढती है ध्यान रखे बाकी आप की मर्जी :)
गौरव जी और बालकिशन जी,
आप दोनों अच्छा लिखते हैं। इस पोस्ट और इससे पहले के पोस्टों के बिना पर इतना कह सकता हूं कि आप दोनों ने थोड़ी-थोड़ी गलतियां की हैं, जो यह चिंगारी भड़की। थोड़ा धैर्य रखें.. कड़वाहट का कोई इलाज नहीं.. ना ही चीनी और ना ही पोस्ट.. अगर कोई इलाज है तो प्रेम भाव.। जो ऐसे समय में मुश्किल से आ पाता है.. लेकिन वह भी क्या चीज हुई जो आसानी से मिल जाए..
मेरी बातों के भाव को आप दोनों समझ रहें होंगे..
इस सारे प्रकरण में पंगेबाज जी से सहमत हूं..
बात निकलेगी तो फ़िर दूर तलक जायेगी...
कड़वा कड़वा थू मीठा मीठा हप्प...ये सिधान्त होना चाहिए जीवन में...क्या हम ब्लॉग्गिंग एक दूसरे पर छीटाकशी को कर रहे हैं..उसके लिए जीवन में और लोग कम हैं क्या? अच्छा नहीं लगता जब दो संवेदनशील लेखक एक दूसरे पर यूँ आरोप प्रत्यारोप करें..छोडिये और मुस्कुराईये
नीरज
मैं भी कुछ कहूं? मगर क्या कहूं, यहां शायद इनके लिए, उनके लिए का पर्याप्त अवसादवाद फैला हुआ है. गुस्सा और बलतोड़ की तक़लीफ़ तो फैली है ही. गनीमत है बालकिशन ने गौरव का फ़ोन नंबर और घर का पता नहीं मांगा है, हालांकि गौरव ने दे देने की बेकली ज़रूर दिखायी है. ओह, कैसी बेकरारियां, तक़रारियां हैं? और शिवकुमार मिश्र इसपर ग़ज़ल नहीं पढ़ रहे हैं..
@गौरव, सुना था बात निकलेगी तो बंबई तलक जायेगी-जाती है, मगर यह तुम उसे कलकत्ता तक पहुंचाकर पता नहीं किस तरह की लीक स्थापित कर रहे हो? यह किसी नये साहित्यिक गेरिल्लापंथ का सूत्रपात है? और अगर है तो लालमुकुंद की तुमने चर्चा की, और मुझे याद नहीं किया, मैं जेनुइनली ग़मगीन व ग्लूमी हो रहा हूं.
syaad baalkishan jee ko pataa nahin hoga ki aap apne ko saahitykaar maantey haen , blogger pehlae blogger hota haen baad mae kuch aur . bas itna hee kahugee
गौरव जी,
मैंने आपकी पोस्ट पर जो टिपण्णी की थी, वो मैंने हटा दी है. मुझे ऐसी टिपण्णी नहीं करनी चाहिए थी. मैं आपसे माफी मांगता हूँ. मैंने आपकी इस पोस्ट के ऊपर जो पोस्ट लिखी थी, वह भी मिटा दिया है. आपसे यह भी कहता हूँ की आप अगर कहेंगे तो मैं अपनी पहली वाली पोस्ट को भी मिटा दूँगा.
मुझे पूरा विश्वास है कि ऐसा करने से अब यह मामला शांत हो जायेगा.
गौरव, मैं यहां पर ज्यादा समय से नहीं लिखता लेकिन इतना जरूर समझ गया हूं कि यहां पर कुछ आप को बढ़ावा देंगे और कुछ हैं जो कि हमेशा ही आपकी टांग खींचेंगे। लकिन ये आप पर निर्भर करता है कि आप उसको कैसे लेंगे। हां ये भी है कि कोईं भी आप को ठेस पहुंचाए तो आप जवाब जरूर देंगे। मेरे को पूरा वाक्या नहीं पता लेकिन जितना यहां पढ़ा उससे लगता है कि बात ना बढ़ती तो ही बेहतर रहता। जवाब ज्यादा कड़वे हो गए। और दूसरी बात यदि किसी पर निशाना साध रहे हों और वो भी पलटकर साध ले तो उसके कमेंट उड़ाना नहीं चाहिए। हम भी तो जानते कि ऐसा उसमें क्या था जिस कारण आप ने उड़ा दिया लेकिन फुली डिलीट नहीं किय। टिप्पणियां तो काउँट होंगी ही।
Rachna is correct Gaurav . u must listen to her.
रचनाजी और पंगेबाज से पूरी तरह सहमत। घोस्टबस्टर ने भी सही कहा। दोनों कविताएं पढ़ीं। पहले तो बालकिशनजी ने आपके साथ कोई अन्याय नहीं किया , ऐसा साफ लगता है। दूसरी बात यह कि थोड़ा धीरज रखना चाहिए। हिन्दी वालों को लतियाने और गरियाने में आप भी आगे आ रहे हैं तो स्वागत है मगर हिन्दी को बनाए रखने में इन्हीं हिन्दी वालों के खुरदुरे व्यक्तित्व का बहुत ज्यादा योगदान है। बाकी चार अंगरेजी फिल्में, चंद कवि- आलोचकों और वो तमाम नाम जो आप गिना रहे हैं उन्हें जान लेने से भी क्या किसी को भलामानुस या समझदार साबित हो जाता है ? मुझे तो नहीं लग रहा है, आप आपको लगता होगा ।
उम्र का तकाज़ा है मगर अड़ना हमेशा खुद को ही नुकसान पहुंचाता है। हो सकता है आप इसे भी नसीहत कह कर चार बातें हमें भी सुना दें, मंजूर है। मगर कहे बिना रहा नहीं गया , सो कह रहे हैं, आप ऊर्जावान हैं, प्रतिभावान हैं। इतने सारे साथियों ने जो टिप्पणियां की हैं उनमें निहित शुभम् की ध्वनि को पहचानिये । ये सिर्फ आपके लिए है।
छोटी सी बात पर यूं प्रतिक्रियाएं न दें। भविष्य में और बड़ी बातें होनी हैं जो आपको सुखद चर्चाओं का केंद्र भी बनाएंगी।
शुभकामनाओं सहित
अजित
गौरव,
पहली बात सबसे पहले - जिस रचना की बात हो रही है वह बहुत ही सुंदर है और निस्संदेह आप बहुत प्रतिभावान हैं.
२. आपकी उम्र में मुझे भी ऐसा लगता था कि लाफ्टर चैलेन्ज और सत्यजित राय को पसंद करने वाले दो अलग अलग खेमे में रहते हैं - लेकिन आज काफी ज़िंदगी गुजरने के बाद मैं दोनों में ही आनंद उठाना सीख गया हूँ.
३. बालकिशन जी ने अपने बड़प्पन का परिचय देते हुए अपनी गलती मान ली है और आपके सम्मान में अपनी पोस्ट भी हटा दी है. मेरी नज़र में इसे ग्रेसफुली स्वीकार करना आपकी ओर से एक बहुत परिपक्व कदम होगा.
४. मैं देख रहा हूँ कि यहाँ जितने लोगों ने भी कुछ लिका है वे सब (बालकिशन जी सहित) आपके शुभाकांक्षी हैं और यहाँ पर सिर्फ़ आपके प्रति सद्भावना की वजह से ही हैं.
५. अपने जीवन के सभी निर्णय (और उनकी जिम्मेदारी) तो आपको ख़ुद ही लेनी है मगर एक अच्छे सलाह को पहचानकर उसपर अमल करना भी एक बड़ी कला है और यह आसानी से सीखी जा सकती है.
Blessings!
आदरणीय अजित जी, मैं फ़ारसी वाला या फ्रेंच वाला नहीं हूं कि हिन्दी वालों को लतियाऊँ या गरियाऊँ। बात सिर्फ़ इतनी है कि हिन्दी ब्लॉग दुनिया में जो आपके कहे अनुसार खुरदरे लोग हैं, मेरे ख़याल से वे खोखले लोग हैं।
रही बात चार अंग्रेज़ी फिल्में देखने की या चार नाम जानकर खुद को समझदार साबित करने की तो न ही मुझे ऐसा करने की आवश्यकता है और न ही ऐसा मैंने किया है। शायद आपको अपनी विद्वता दिखाने का यह तरीका लगता हो।
और कमेंट में मिठास लाने के लिए मुझे प्रतिभावान या ऊर्जावान कहने की जरूरत नहीं थी। मैं इन झूठी शुभम की ध्वनियों के बगैर भी बड़े आराम से जी सकता हूं।
जहाँ तक आप रचना जी को सही ठहरा रहे हैं तो मुझे आपकी बात का उत्तर देने की आवश्यकता नहीं है क्योंकि मैं समझता था कि आप तो जानते होंगे कि साहित्यकार को सर्टिफिकेट लेने की जरूरत नहीं होती।
मैं पर्याप्त धीरज रखे हुए हूं और यदि आप उस पैरोडी को ग़लत (अन्याय सही शब्द नहीं है...शायद आपको भी लगे) नहीं मानते तो मैं कुछ नहीं कहूंगा, सिवा इसके कि आप शब्दों के धनी चाहे हों, लेकिन आपमें साहित्यिक संवेदनशीलता का घोर अभाव है।
नितिश जी, बालकिशन जी ने अपना कमेंट खुद डिलीट किया। मैंने कुछ नहीं किया।
प्रमोद जी, आपके कॉपीराइट का नाम बिना अनुमति के प्रयोग करने के लिए माफ़ी चाहूंगा।
और आखिर में सबसे बड़ी बात, इस दुनिया की सबसे बड़ी विडम्बनाओं में से माफ़ी माँगने का अधिकार बहुत ऊपर है।
हूँ..........मामला काफी समझ आया की यहाँ क्या चल रहा है!........चलिए बिन मांगे मैं भी अपनी राय यहाँ उढेल देता हूँ........
१. पहली बात गौरव जी के लिए: गौरव जी, मै आपको व्यक्तिगत तौर पर नहीं जानता हूँ, इसलिए आप इतना तो मानेंगे ही की मेरी आपसे कोई व्यक्तिगत शत्रुता नही है.........अतएव अगर मेरी कोई बात आपको बुरी लगे तो उसे अन्यथा न ले, और अगर लगे भी तो मुझे क्षमा करें.........मैं कोई बोहत बूढा तो नही हूँ, पर आपसे कुछ साल बड़ा हूँ, और इसलिए मै यह कह सकता हूँ की क्रोध हमारे लिए अच्छी नही होती है.......क्रोध का आना स्वाभाविक है........वह हमारे हाथ में नही होता, क्रोध को दबाना हमारे हाथ में होता है. आपको बुरा लगना स्वाभाविक है..........इस बात की सबसे अच्छी प्रतिक्रिया यही होती की आप इस बात को अनदेखा ही कर देते...........आप कीचड़ में जितने पत्थर उछालेंगे, आपका ही दामन उतना मैला होगा..........बड़प्पन क्षमा में है.........बड़प्पन संयम में है.........जीवन में ऐसे एक नहीं, अनेक मौके आयेंगे जब आपको लोगो की बेवजह आलोचनाएँ सुनने को मिलेंगी........आप सारी बातो का जवाब देते हुए अपनी उर्जा को यूँ ही व्यर्थ तो नही कर सकते न??....आप जितने संयमित और अडिग बनेंगे, उतने ही अपनी उर्जा को व्यर्थ होने से बचा पाएंगे. एक अंग्रेज़ी कहावत है.........
"Never ever argue with a fool, because soon he will bring you up to his level, and then defeat you with his experience"!
२. दूसरी बात बालमुकुन्द जी के लिए: मैंने आपकी रचना भी पढ़ी......और उसका मकसद भी समझने का प्रयास किया........पढ़कर लगा की ऐसा किसी को ठेस पहुंचाने के उद्देश्य से नही किया गया था, बस थोडी चुटकी और मजे के लिए लिखा गया था.........आपने अपनी गलती मानकर अपने बड़प्पन का परिचय तो पहले ही दे दिया है, और क्या कहें?? आप बड़े इंसान है, और भविष्य में ऐसे कार्यों से बचे तो अच्छा ही है...........परन्तु फ़िर कहूँगा, कोई भी लिखे तो अपनी दिल की लिखे. यह सोचकर न लिखे की लोग इसपर क्या प्रतिक्रिया करेंगे.
३. तीसरी बात टिपण्णी कारों के लिए: मुझे बेहद ही दुःख के साथ कहना पड़ रहा है की कुछ टिपण्णी कर बस बेवजह तारीफ करने और चाटुकारिता करने के लिए बैठे होते है.............मैंने कुछ लोगो की टिप्पणिया पढ़ी..........जिन्होंने गौरव जी की टिपण्णी में तो तारीफें लिखी, और फ़िर बालमुकुन्द जी की रचना की टिपण्णी में निंदा रस और व्यंग रस का भरपूर आनंद भी लिया...........मुझे ऐसे द्व्यम चरित्र के प्राणियों से थोडी परहेज़ है.........भला हो यदि आप लोग अपनी आत्मा की बात को सुने और कहें..........यदि कोई चीज़ बुरी लगे, तो कहें की बुरी है, झूटी तारीफें न करें...........एक जगह तारीफ कर, दूसरी जगह उसका मजाक न उड़ावें..........यह घृणित है........और एक किसम के निम्नकोटि के आनद प्राप्ति का माध्यम है...........इससे बचें!...... दिल की बात करें, और खुल कर करे.
Dyan se.. mere Dost Gourav Solanky ke khilaf kuchh bhi kahne se pahle soch lo men Tona-Totaka janta hun uske khilaf bolne walon ko zindagi bhar haklan pad sakta hai...
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