डर लगाकर सोने के सपनों में उसकी आवाज़ कुछ ज़्यादा मीठी हो जाती थी और रीढ़ हल्की सी मुड़ जाती थी। बीमार होकर वह जल्दी मर न जाए, इस डर से वह सुबह जल्दी उठने के सपनों में प्राणायाम करता था। दुनिया में कुछ बड़ा हो और कहीं उसे पता ही न चले, इस डर से शाम को साढ़े आठ बजे के सपने में टी वी पर समाचार देखता था। उसकी पत्नी उसे छोड़कर न चली जाए, इस डर से रात सवा दस बजे के सपने में उसे नियम से उसी तरह प्यार करता था, जिस तरह उसकी पत्नी को पसंद था। डर लगाकर सोने के सपनों में बीमे की किश्त और बैंक के खातों के नम्बर भी घूमते रहते थे।
उसका बहुत मन करता था कि वह आँखों में तितली या गुब्बारा या माउथ ऑरगन लगाकर सोए। एक दिन एक तितली उसकी बन्द आँखों में आकर सो गई थी तो उसे बहुत मीठी नींद आई थी, जिसमें बारिश से पहले के सात इन्द्रधनुष थे। लेकिन जब चार बजे का अलार्म सुनकर वह उठा और आँखें खोलकर उसने अपनी पत्नी से चाय बनाने के लिए कहा तो तितली नाराज़ होकर भागती हुई उड़ गई। उस दिन से वह अख़बार के बच्चों वाले पन्ने से तितलियों की तस्वीरें काटकर अपनी सफेद शर्ट की जेब में इकट्ठी करने लगा, लेकिन एक दिन उसकी पत्नी ने घर में रद्दी बढ़ जाने के बाद जगह कम पड़ जाने के डर से उन तितलियों को बेच दिया। उसके बाद रात के सवा दस बजे पत्नी ने उसे उस तरह प्यार किया, जैसे उसे पसन्द था और उसे समझाया कि तितलियाँ बढ़ती जातीं तो एक दिन घर में सिलाई मशीन, आटे के कनस्तर, साइकिल और पलंगों को रखने की जगह नहीं बचती। उसकी पत्नी ने उसे कहा कि उसे तितलियों से डरना चाहिए और गुब्बारों से भी, क्योंकि उनमें पागल कर देने वाला नशा होता है जिसमें आदमी को करणीय-अकरणीय और नैतिक-अनैतिक का भेद भी याद नहीं रहता। उसके बाद उसकी पत्नी ने उसकी छाती के बालों को सहलाते हुए उसके कंधे को चूमा था और वह आँखों में डर लगाकर सो गया था। उसने जो चादर ओढ़ रखी थी, सोने के दौरान उसमें एक भी सलवट नहीं बढ़ी थी।