कंचनजंघा की छत पर
मेरे उबले हुए होठों की भाप से
सेक रहे थे हम
तुम्हारी हथेलियों की गुदगुदी
और हमारे हिस्से नहीं आए
गाँव वाले खेत को जाने वाली पगडंडी
आसमान तक खड़ी हो गई थी,
चलो, अपनी लड़खड़ाहट
इस रास्ते पर बोते हुए
टहलते हुए नीचे चलेंगे,
तुमने कहा था
और मैं कहता रहा था
कि कूद जाते हैं।
तुम सुनहरे रंग की हो
क्योंकि
तुम्हारे बनाए जा सकते हैं जेवर,
तुम्हें पहना जा सकता है,
तुम्हें रखा जा सकता है
तुम्हारे पति की शादी के बाद के
दिखावे के सामान में
सबसे आगे।
काजू, बादाम, किशमिश,
तुम प्लेट में सजे हुए
सूखे मेवों के रंग की भी हो,
जाने क्यों...
हमारे लौटने के बाद
गिलहरियों ने कुतर खाई थी
सारी पगडंडी
और हमारी बची हुई जूठी शराब पीकर
एक गिलहरी रात भर
आसमान से पूछती रही थी
उसके नीले रंग का कारण।
आधे बादामी,
आधे बावरे रंग के बदनाम गिरगिट
मैंने देखे हैं सड़क पर।
समझाओ ना उन्हें
कि ढूंढ़ लें कोई नौकरी
दस से पाँच की
और सीने की फाँकें काटकर
सुबह नाश्ते में खाया करें
ब्रेड बटर के साथ।
कूद ही जाते हैं,
मेरे इस प्रस्ताव पर
बौखला जाती हो तुम
और मेरी आँखों से
दो बूँद खून लेकर
मेरे माथे पर लिख देती हो
मेरा असंवेदनशील होना।
कौनसी रिंगटोन है ये
कि हाथ से कूदकर
धरती पर गिरने को होता है मोबाइल,
ओह!
तुम्हें आया है फ़ोन किसी का,
तुम्हें जल्दी है जाने की
इतनी कि
पिछले मिनट में पाँव रखकर
दौड़ जाना चाहती हो।
छूटते हुए तुम
उस झुनझुने पर
अपनी गुदगुदाती हथेली रखकर
लगभग मेरी ओर मुड़कर
कह ही देती हो
कि बहुत अनरोमांटिक हूँ मैं
और रात अचानक हो जाती है।
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7 पाठकों का कहना है :
ये शायद नये शहर का कमाल है :-)
गौरव तुममे जो ग्रास है वो गजब का है...वो प्रगतिशील से आगे वाला हिस्सा है...शब्दों को बांधना एक अलग बात होती है...लेकिन शब्दों को खुला छोड़कर अपनी बात कहना एक और बात... और ये बात तुम बखूबी कर लेते हो. बधाई
जय हो....जमें रहें
ग्रास की जगह ग्रेस पढे
बहुत अच्छा.
खूब बंधू। लगते तो नहीं हो इतने अनरोमांटिक।
तो कर चुके कंपनी ज्वाईन?
बहुत हीं अलग तरह की रोमांटिक-सी तथाकथित अनरोमांटिक कविता लिखी है तुमने।
अच्छी लगी।
बधाई स्वीकारो।
-विश्व दीपक ’तन्हा’
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