पिछली पोस्ट को बहुत प्रशंसा मिली तो मुझे भी लगा कि अभी दुनिया में कुछ लोग हैं, जो आई आई टी के बारे में सुनना चाहते हैं। ये जब से इंडिया शाइन कर रहा है, तब से हमारे यहाँ के लोग जागरुक हुए हैं, नहीं तो कुछ साल पहले तक छोटे कस्बों में तो लोगों के लिए I I T और I T I बराबर ही था।
दो साल की हिला देने वाली मेहनत के बाद जब मेरा सेलेक्शन हुआ तो एक दोस्त की माताजी ने बहुत मासूमियत से पूछा – बेटा, इतनी दूर रुड़की में पढ़ने क्यों जा रहा है? यहाँ जयपुर- वैपुर में एडमिशन नहीं मिल रहा था क्या?
मैंने भी बहस नहीं की। कह दिया कि नहीं, मैं कहाँ आपके सुपुत्र जितना होनहार हो सकता हूं?
खैर, अब जब इज्जत मिलती है तो बहुत सारी बातें आसानी से भूल गया हूं। जो मेहनत के बावज़ूद यहाँ नहीं आ पाए होंगे, वे बहुत कुछ नहीं भूले होंगे।
IITians की एक खासियत है- अपने brand name को भुनाते बहुत अच्छे से हैं। जहाँ कहीं भी आर्थिक, सामाजिक या ‘भावात्मक’ लाभ मिल सकते हैं, अपने brand का फायदा उठाने से चूकते नहीं।
जैसे हमारे कैम्पस के आस पास जो रैस्टोरेंट हैं, IITians को खाने में कुछ छूट देते हैं, तो हम कभी कहना नहीं भूलते कि IIT वाला बिल लाना।
जैसे हम ट्रेन में सफ़र कर रहे हों और आसपास कुछ ‘अच्छी’ लड़कियाँ हों तो हम आपस में ऐसी चर्चा जरूर छेड़ देते हैं, जिसमें इस महान संस्थान का नाम बार बार आए। वैसे ज्यादातर लोग सफ़र के दौरान बड़े बड़े अक्षरों में IIT लिखी हुई टी शर्ट हमेशा पहनते हैं। इससे कोई न कोई बेचारा पूछ ही बैठता है कि IIT में हो क्या? और फिर सीना गर्व से चौड़ा हो जाता है, मस्तक ऊँचा हो जाता है, होठों पर humble सी मुस्कुराहट आ जाती है इत्यादि इत्यादि...
ऊपर अच्छी लड़कियों की बात छिड़ी तो सोच रहा हूं कि हज़ारों लड़कों के दिल का दर्द कह ही दूं। हम सब सोचते हैं कि अब IIT में लड़कियों के लिए आरक्षण हो ही जाना चाहिए। बचपन से हिन्दी फ़िल्में देख देख के लगता था कि कॉलेज में ‘खम्भे जैसी खड़ी है’ टाइप गीत गाने का खूब माहौल होगा, लेकिन यहाँ तो सिर्फ़ खम्भों के बीच में बिजली का transmission कैसे होता है, इसी की बातें चलती रहीं। IIT में लड़कियों की घोर कमी है। मैं इस पोस्ट के माध्यम से सरकार तक अपनी यह व्यथा भी पहुँचाना चाहता हूं। यदि कोई पावर वाला व्यक्ति अथवा समाज-सुधारक अथवा नारी उत्थान कार्यकर्त्ता इसे पढ़ने की भूल करे तो इस दिशा में कुछ कदम जरूर उठाए ;)
‘चोखेरबाली’ वाले भी चाहें, तो कुछ मदद कर सकते हैं।
अपनी तो जैसे कटी, सो कटी, आने वाली पीढ़ी को युवावस्था में वानप्रस्थ की feeling ना आए।
खैर, मज़ाक की बात मज़ाक में उड़ा दीजिए। हम सब इस त्रासदी से चाहे कितने भी दुखी हों, किसी भी तरह के आरक्षण के सख्त खिलाफ़ हैं। इस मुद्दे पर इसे ही हमारा अंतिम बयान समझा जाए। हाँ, वह बात अलग है कि पिछले कुछ समय में OBC को आरक्षण दिए जाने के बाद देश भर में जो विरोध हुआ, उसमें IIT वाले सबसे कम सक्रिय रहे। इसका कारण मैं भी नहीं समझ पाया, लेकिन यह दुखद अवश्य था। दुर्भाग्यवश शायद हम उस स्तर पर पहुँच गए हैं, जहाँ हमें घटिया राजनीति, सुस्त प्रशासन और सोई हुई जनता, किसी से भी कोई फ़र्क नहीं पड़ता। अपने जीवन में यहाँ तक पहुंचने के लिए किए गए संघर्ष और मेहनत ने जाने अनजाने में हममें से अधिकांश को स्वकेन्द्रित और असंवेदनशील बना दिया है।यहाँ का पारदर्शी सिस्टम हमें भारत को सुधारने की नहीं, अमेरिकन ढंग से जीने की प्रेरणा देता है और हम बाहर के भ्रष्ट, अव्यवस्थित भारत में स्वयं को असहज महसूस करने लगते हैं। आश्चर्य नहीं कि ग्रेजुएट होने के बाद आई आई टी वाले अमेरिका की ओर आकर्षित क्यों होते हैं?
यह दुखद है, किंतु सत्य है।
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7 पाठकों का कहना है :
वो कहते है ना भारत की सबसे बड़ी त्रासदी यही है की यहाँ का बुद्धि जीवी वर्ग खामोश है......इसलिए
अरे भाई, बाकी जो भी हो... लड़कियों के बारे में तो २००% सही हो :-)
गौरव IIT के बारे में मै तुमसे विस्तार से बात करूँगी मेरा बेटा आदित्य भी करना चाहता है...अभी दसवीँ की परीक्षा दी है उसने...
हा हा हा ........ निराले लोगों के निराले अंदाज.गैर,iitian होकर भी iit बारे में इतना कुछ जान पाया,उसका कारण आप ही हैं,बहुत खूब
आलोक सिंह "साहिल"
जैसे हम ट्रेन में सफ़र कर रहे हों और आसपास कुछ ‘अच्छी’ लड़कियाँ हों तो हम आपस में ऐसी चर्चा जरूर छेड़ देते हैं, जिसमें इस महान संस्थान का नाम बार बार आए।
:):)
भाई! लड़कियों के बारे में इतना कम लिखकर तुम अपना पल्ला नहीं झाड़ सकते। और लिखो.........कम से कम पढकर हीं तो संतुष्ट हो सकें, देखने को तो मिलती नहीं ;)
-विश्व दीपक ’तन्हा’
are bhai t-shirt wali baat mast h yar
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