इससे पहले कि शराब पीना खो दे अपनी अश्लीलता

इससे पहले कि
शराब पीना
खो दे अपनी अश्लीलता
और आम हो जाए
क्रिकेट खेलने की तरह,
उसे लगने लगा है कि
उसे शुरु कर देनी चाहिए शराब।

उसने चुन ली है नीली दीवार,
उस पर लेटकर
वह खेल रहा है ‘चिड़िया उड़’,
उसे प्रेम हो गया है चिड़िया से,
वह खेल रहा है
’मत उड़ चिड़िया’,
चिड़िया को पसंद है
लाल तिनकों का घोंसला
जैसे उसे पसन्द हैं कविताएँ
या उसके पिता को पसन्द है
चाय सुड़कते हुए अख़बार पढ़ना।
यह हज़ारवीं बार है
जब वह लालकिले की एक दीवार पर
दिल बनाकर
पेंसिल से कुरेद आया है
तीर का निशान।
एक लड़की ने फूल से कहा है
कि हँस रही है वह,
फूल मुरझा गया है।

ट्रेन में हो रही है तलाशी
लालकिले पर हमला करने वाले
आतंकवादियों के लिए,
उसके पास नहीं है टिकट,
वह रो रहा है,
डिब्बे में लगा है एक शामियाना
लाल रंग का,
चिड़िया को पसंद था
लाल कालीन,
बंजी जंपिंग
और रॉक क्लाइम्बिंग।
पहाड़ों पर मुट्ठियाँ धँसाकर चढ़ती
चिड़िया के लिए
रो रहा है वह,
किसी ने आकर उसकी आँख में
रख दी है लड़की,
चिड़िया का पंख
और आँख भर तौलिये।

उसके पिता कल परसों में
दायर करने वाले हैं
ज़िला कोर्ट में अपील
कि प्रतिबन्ध लगा दिया जाए
नीले दुख वाली कविताओं पर।

और इससे पहले कि
वह अपने कबाड़ वाले कमरे में
किसी रात गिरफ़्तार कर लिया जाए
अश्लील उदास कविताएँ लिखते हुए,
ज़िन्दा रहने की आखिरी संभावना
को अवसर देने के लिए
उसे लगने लगा है कि
उसे जल्दी शुरु कर देनी चाहिए शराब।



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3 पाठकों का कहना है :

शायदा said...

बहुत अच्‍छी कविता है।

Pratyaksha said...

ये अंदाज़ भी अच्छा लगा !

राकेश जैन said...

likhne ke ek alag andaz se bakif hua, samajhne me pareshani hui...