ऑर्कुट पर एक कम्युनिटी है- वी हेट एकता कपूर अर्थात ‘हम एकता कपूर से नफ़रत करते हैं’। उसके करीब सत्तर-अस्सी हज़ार सदस्य हैं और कल तक मैं भी उनमें से एक था। कल एक अलग दृष्टिकोण से सोचा और अब मैं एकता कपूर से घृणा नहीं करता। कारण है एक और चैनल- मेरा ‘वी’ महान!
हाँ, यही इस महान चैनल का नया महान सूत्रवाक्य है। चैनल वाले सुबह से शाम तक गला फाड़ कर चिल्ला रहे हैं कि हम महान हैं और आप भी जानते हैं कि कलयुग में सौ बार कहा गया झूठ सच हो ही जाता है। देशभक्ति के इस नारे का एक विदेशी बाज़ारू चैनल बीच पर नाचती बालाओं के द्वि अथवा त्रिअर्थी गानों के बीच बहुत अभिमान के साथ दुरुपयोग कर रहा है और फिर स्क्रीन पर उसी अमेरिकन बेशर्मी और बदतमीजी के अन्दाज़ में लिखा आता है- कृपया mind कीजिए। मतलब है कि आपको जो उखाड़ना है, उखाड़ लीजिए। हम तो आपकी संस्कृति का इसी तरह चीरहरण करते रहेंगे।
आप पूछेंगे कि इन के पास इतना साहस आया कहाँ से? ये आया है स्वयं को डी.जे. कहलवाने वाले ‘दिलजीतों’ और प्रिटी कहलवाने वाली ‘प्रीतियों’ से। आपको खबर हुई हो या न हुई हो, लेकिन इण्डिया और भारत बिल्कुल अलग अलग हो ही चुके हैं। जो भारत में हैं, वे यही ‘वी’ और ‘एम टी वी’ देखकर, अंग्रेज़ी गाने सुनकर, सिडनी शेल्डन के चलताऊ उपन्यास पढ़कर किसी भी कीमत पर इण्डिया का वीज़ा पाना चाहते हैं और जो इण्डिया में हैं, उन्हें भारत से उतनी ही घृणा है, जितनी महानगर में बसे अहंकारी अमीर भाई को अपने कस्बाई गंवार भाई से हो सकती है। कुल मिलाकर इस भारत नाम के देश में जो हैं, वे बेचारे मजबूरी में हैं और जैसे ही मौका मिलेगा, निकल लेंगे।
तभी तो ‘वी’ आज का युवाओं का चैनल है और बात सिर्फ़ एक चैनल की नहीं है, टी.वी. पर यही भोंडा नाच चल रहा है। बच्चों के कार्टून नेटवर्क पर जाओ तो वहाँ अंग्रेज़ी लहजे में हिन्दी बोलती असामान्य आकृतियां मिलती हैं। ऐसे में मुझे पोटली बाबा की, मोगली और सिन्दबाद बहुत याद आते हैं।
अपने ‘वी’ वाले ‘कैम्पस स्टार’ नाम से कोई प्रतियोगिता भी आयोजित करवा रहे हैं और मुझे उसका भी विज्ञापन देखने का सौभाग्य मिला।
उसका नारा है- कौन फाड़ेगा, किसकी फटेगी? अब इसके बाद सरकार यदि टीवी पर निगरानी कमेटी बिठाती है तो मैं भी साथ हूं। यह केवल अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का हनन है या हमें वाकई निगरानी की जरूरत है?
अब आप कहेंगे कि इन सबके बीच एकता कपूर कहाँ से आ गई?
मैं मानता हूं कि एकता कपूर के तमाम धारावाहिक विकर्षित करती नाटकीयता, घिसी-पिटी कहानी और मनमर्ज़ी की स्पेलिंग वाले नामों के होते हैं और मैं उन्हें नहीं देख पाता। लेकिन क्या इस दौर में यही काफ़ी नहीं है कि टीवी पर कुछ तो है, जिसके किरदार हिंग्लिश या इंग्लिश की बजाय हिन्दी में बातें करते हैं। उसके धारावाहिकों की सजी संवरी अमीर महिलाएं चाहे कुछ और काम न करती हों, लेकिन संस्कारों और संस्कृति की बातें तो करती हैं। भारतीय त्यौहार तो उन धारावाहिकों में मनाए जाते हैं।
कल तक मैं माँ को उन ‘क’ नाम वाले धारावाहिकों को पसन्द करने पर उलाहना दिया करता था, लेकिन अब लगता है कि मेरी विशुद्ध भारतीय माँ के पास उससे बेहतर कोई विकल्प छोड़ा ही नहीं गया है और ऐसे में मैं एकता कपूर को ह्रदय से धन्यवाद देता हूं कि टीवी पर भारत कहीं तो ज़िन्दा है। आज हमारे पास ‘हम लोग’, ‘तलाश’ और ‘नुक्कड़’ तो नहीं हैं और न ही हम बना पा रहे हैं तो एकता कपूर जो थोड़ा बहुत कर रही हैं, उन्हें तो करने दीजिए।
मैं अब भी उनकी रचनात्मकता को पसन्द नहीं करता, लेकिन अब मैं एकता कपूर से चिढ़ता भी नहीं हूं।
एकता, मैं आपका आभारी हूं। ‘वी’ का कुछ बिगाड़ने की तो शायद हम भारतीयों में कुव्वत नहीं बची।
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मेरा [V] महान बनाम एकता कपूर! |
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जाने कैसा जुनून है! |
जब ये निर्मम दीवारें
सह नहीं पाती
मेरे सिर के दर्दनाक आघात
बार-बार
और इन पर लिखने लगता हूं
पसीना मिले खून की लाल स्याही से
वो एक शब्द
तो जानती हो अम्मा,
दीवारें टूटकर बिखर जाती हैं
काँच के मर्तबान की तरह,
जब भाग्य मुस्कुराता है व्यंग्य से
और अकड़ता है मूंछें तानकर,
तब ये डगमगाते कदम
नि:शब्द बढ़ते रहते हैं
अंगूठे पर रखकर भाग्य की मूंछें,
और हर अबोध सफ़र
पढ़ता है वही एक शब्द कायदे में
तो जानती हो अम्मा,
वही बड़ा सा आसमान सिमट आता है
इन्हीं दो हथेलियों में,
जब जब जुड़ता है ज़िन्दग़ी की रेलगाड़ी में
पराजय का एक और कूपा
और सब झंडियाँ
लाल रंग दी जाती हैं,
तब तब मैं बावरा होकर
उस शब्द की हरी पत्तियों से
रंगता फिरता हूं
झंडे, सड़कें, सपने, आँखें
और जानती हो अम्मा,
जाने कैसा 'जुनून' है!
कुछ भी नामुमकिन नहीं होता अब
सच...
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