महफ़िलों को जिया मंदिरों की तरह

पुरानी कविता है। आज याद आ गई तो सोचा सबके साथ फिर से बाँट लूँ। यह मेरी सबसे ज्यादा पसंद की गई कविताओं में से थी। आज ढूँढ़ा तो डायरी में तो मिली पर कम्प्यूटर पर नहीं। मैंने सोचा कि कौन टाइप करने की मेहनत फिर से करे? मैंने ओर्कुट पे ढूंढ़ा तो कुल 9 रिज़ल्ट आए। मुझे बहुत अच्छा भी लगा। मैं जानता था कि जब पिछले साल मैंने ये कविता अपने ओर्कुट प्रोफाइल में लिखी थी तो बहुत लोगों ने मेरा पूरा प्रोफ़ाइल ही कॉपी कर लिया था।
कई बार चोरी होने पर भी अच्छा ही लगता है।
डायरी में कविता के साथ कुछ और पंक्तियाँ भी लिखी थीं। वे भी लिख रहा हूँ।

21-10-2006
लोग कहते हैं, आज दीवाली थी, मगर मेरी दीवाली जाने क्यों आती ही नहीं? उसके इंतज़ार में कब से बेतुकी सी बातें लिखे जा रहा हूँ...




बुलबुलों में रहा पिंजरों की तरह,
रास्तों पर चला मंजिलों की तरह,

मैं नशे में भी होश ना खो सका
महफ़िलों को जिया मंदिरों की तरह,

सपने हकीकत सब बेकार थे
इस सजा को जिया शापितों की तरह,

शौक था एक ही बस बगावत का
फ़ौजियों में रहा बागियों की तरह,

नाम था या थी ये सब बदनामियाँ
खबरों में रहा हादसों की तरह,

ठहरे पानी सा ही यूं तो ठहराव था
नफ़रतों में चला गोलियों की तरह,

हरेक का यहाँ कोई खरीददार था
मैं फ़ेरियों में बिका फ़ुटकरों की तरह,

इश्क़ को क्यों इबादत कहते हैं लोग
खाइयों में गिरा आशिक़ों की तरह,

दूंद ली भीड़ में भी मैंने तनहाइयां
शादियों में रहा मातमों की तरह,

हार को चूमा हर बार बहुत प्यार से
हौसलों से मिला मुश्किलों की तरह,

दर्द की वजह बस एक इन्तज़ार था
हर घड़ी से मिला दुश्मनों की तरह,

हर मोड़ पर एक ऊंची दीवार थी
झांका दरारों से कनखियों की तरह,

दिल से मिटाया मेरा नाम बार बार
उनके गालों पर रहा सुर्खियों की तरह,

मैं गूंगा था,उन्हे शौक था शोर का
बस बिलखता रहा जोकरों की तरह,

ये लिखना तो बस एक दोहराव था
बस उन्हीं को लिखा, हर तरफ़,हर तरह...



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3 पाठकों का कहना है :

Dr. sunita yadav said...

बुलबुलों में रहा पिंजरों की तरह,
मैं फ़ेरियों में बिका फ़ुटकरों की तरह,
झांका दरारों से कनखियों की तरह,
बस उन्हीं को लिखा, हर तरफ़,हर तरह...

कविता में सबसे अच्छी पंक्तियाँ मुझे ये लगीं
फ़ौजिओं में बाग़िओं की तरह,ख़बरों में हादसों की तरह,और तो और
हर घड़ी से दुश्मनों की तरह मिलना ...ये तो सिर्फ़ आप ही लिख सकते हैं

शब्द समर्थता के दायरे से बाहर झाँक रहे हैं..क्या कहूँ बहुत ख़ूब
और ढूंढिए 1/2 और कविता मिल जाएगी .... हम सभी इंतज़ार में हैं

सुनीता

डाॅ रामजी गिरि said...

शौक था एक ही बस बगावत का
फ़ौजियों में रहा बागियों की तरह,

Bahut hi sundar bhav hai is kavita me.

Anonymous said...

just one word for it:

AWESOME