फ़िल्म देखते हुए पहला ख़याल यही आया कि प्रियदर्शन जी को तो ‘जब वी मेट’ देख लेनी चाहिए। देखनी तो बहुत से बड़े लोगों को चाहिए, मसलन 'अपनी आग' बनाने वाले रामगोपाल वर्मा को, 'झूम बराबर झूम' बनाने वाले शाद अली को, किंतु हाल ही में देखी ‘भूलभुलैया’ ही मुझे याद आई, सो कोप का शिकार भी प्रियदर्शन जी को होना पड़ा।
अक्सर हर आदमी एक खास स्टाइल का ही काम करता है, विशेषकर जब वह कला के क्षेत्र में हो। प्रियदर्शन, रामगोपाल वर्मा, शाद अली और अपने इम्तियाज़ अली भी उसी तरह हैं, लेकिन उनकी खास बात यह लगी कि उन्होंने यह लगने नहीं दिया कि वे कहीं अपने आप को दोहरा रहे हैं। हाँ, ध्यान से देखने पर ‘सोचा न था’ के स्टाइल से बहुत सी समानताएँ दिख गईं। कुछ दृश्यों में भी ‘सोचा न था’ की याद आ गई, मसलन घर से भाग जाना, शाहिद कपूर की कंपनी के सीन, होटल में हीरो-हीरोइन का साथ रुकना(संयोगवश) और गानों का फिल्मांकन....
वैसे ये सब चीजें अच्छी लगीं और इतना दोहराव तो दस बार और मंजूर है हमें... और यही इम्तियाज़ की सफलता है। मुझे ‘सोचा न था’ इससे काफ़ी अच्छी लगी थी। उसका कारण यह भी हो सकता है कि इस स्टाइल की वह पहली फ़िल्म मैंने देखी थी।
अनुराग कश्यप ने एक जगह लिखा था कि इस फ़िल्म की सबसे कमजोर बात उन्हें इसका नाम लगी और इसका नाम कुछ बेहतर हो सकता था। यही बात मुझे लगी। इस फ़िल्म का नाम कहानी से भी खास नहीं जुड़ा हुआ और ऐसा कोई खास आकर्षक भी नहीं है।
एक और बड़ी बात- इम्तियाज़ अली हमारे दौर के हैं और वही फ़िल्म बना रहे हैं, जो हमारे दौर की है। उनकी फ़िल्म में झलकती ऊर्जा देखकर कई बार हृषिकेश मुखर्जी की याद आ जाती है।
करीना फ़िल्म में बहुत अच्छी लगी हैं और उन्होंने अभिनय भी कमाल का किया है। शाहिद ठीक-ठाक हैं, लेकिन करीना के प्रभावित कर देने वाले किरदार के सामने कुछ दब से गए हैं। ऐसा लगा कि स्क्रिप्ट में ही करीना को हीरो बना दिया गया था (वैसे बॉलीवुड की अभिनेत्रियों के लिए ऐसी फ़िल्में शुभ संकेत हैं, मेरी सलाह- जाइए और इम्तियाज़ की अगली फ़िल्म झटक लीजिए ;) )।
हाँ, फ़िल्म देखने के बाद फीलगुड में हल्की सी टीस शाहिद-करीना के ब्रेक-अप की खबरों से रह जाती है। शाहिद ने बाद में फ़िल्म देखी होगी तो बहुत से खूबसूरत लम्हे याद आ गए होंगे। लेकिन फ़िल्म के ही एक डायलॉग में करीना अपनी बात कह गई थी- जब आप प्यार में होते हैं, सही और ग़लत कुछ नहीं होता।
अगर अफ़वाहें सही हैं तो शाहिद को भी करीना के नए प्यार को यही मानकर स्वीकार कर लेना चाहिए।
और कोई रास्ता भी तो नहीं है। ......है क्या?
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5 पाठकों का कहना है :
gaurav ,
achcha review diya hai tumne. ab to mujhe bhi movie dekhne ka man karne laga hai. Mujhe bhi "socha na tha" bahut pasand aayi thi. ab sochta hoon ki "jab we met" aaj hi dekh loon.
Aur rahi baat Shahid-Kareena ke break up ki to mujhe lagta hai ki yah film ke liye mahaj ek publicity stunt hai. donon "milenge-milenge" mein bhi saath mein kaam kar rahe hain.Aur bhi kai saari filmein aa rahi hain , unke saath ki. fir bhi dekhte hain ki aage kya hota hai .
-V.D.
पढ़कर अच्छा लगा, देखने के बाद बाकी कुछ कह पाऊँगा,
व्यकितगत चिठ्ठे की बधाई
hello gaurav
sabse pahle to is shuruaat ke liye badai aur aage safalata ke liye shubkaamnaayein.
review pada aur film bhi dekhi hai.
dono hi kaafi acche hain. Ek baat jo is film aur director ki purani film SOCHA NA THA mein common aur acchi lagi ki dono hi film ki language hamari bol chal ki language ki tarah hi thi.
pata nahin film choti thi ya fir acchi ki pata hi nahin chala kab katam ho gayi.man kar raha tha ki chalti hi jaaye.
पिक्चर तो नही देखी है पर आपके रिव्यू को पढ़कर अच्छा लगा । वैसे इस तरह की फिल्में बनती ही रहती है।
गौरव
चलचित्र का सुन्दर समालोचन किया है आपने..
काश हम सब अपने जीवन को भी पहले से जान पाते और बदल पाते...
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