सुनो,
डाकिये को पैसे दिए थे
कि तुम्हारी चिट्ठियाँ
जल्दी ला दिया करे
और तुमने
ख़त लिखना ही छोड़ दिया,
यहाँ पूरा शहर
डाकिया बन गया है
और बार-बार
हर आदमी, हर बात
डाक से दर्द ही दर्द लाते हैं,
तुमने देखा है कभी?
अंतर्देशीय का दर्द,
पोस्टकार्ड का दर्द,
पीले, खाकी लिफाफों का दर्द,
बैरंग दर्द
और दर्द के मनीऑर्डर,
सब आते हैं यहाँ,
बस तुम्हारे ख़त नहीं आते,
कहीं किसी कबूतर को तो नहीं थमा दी
तुमने चिट्ठियाँ,
और वो रास्ता भटक गया हो,
मैं उसकी तलाश में
पंख लगाकर उड़ता हूँ
तो दर्द की धार
पंखों को काट फेंकती है,
हाय रब्बा!!!
कोई कुछ करे,
खोज लाए
बोलती आँखों, लम्बे बालों वाली
उस भोली लड़की के
काँपते हुए हाथों से
लिखी चिट्ठियाँ,
कि किसी की ज़िन्दगी बसती है
उन जल्दबाज़ी में लिखे
प्यारे शब्दों,
अधूरी बातों,
भीगी उम्मीदों में....
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11 पाठकों का कहना है :
यहाँ पूरा शहर
डाकिया बन गया है
तो दर्द की धार
पंखों को काट फेंकती है,
प्यारे शब्दों,
अधूरी बातों,
भीगी उम्मीदों में.
उम्दा! बेहतरीन! बहुत पसंद आई।
आखिरकार तुमने भी अपना चिट्ठा बना हीं लिया ।
लगे रहो।
-विश्व दीपक 'तन्हा'
अच्छा लगा तुम्हारा चिट्ठा देख कर।
कविता बहुत अच्छी है और मन को छू कर गुज़रती है।
बोलती आँखों, लम्बे बालों वाली
उस भोली लड़की के
काँपते हुए हाथों से
लिखी चिट्ठियाँ,
कि किसी की ज़िन्दगी बसती है
उन जल्दबाज़ी में लिखे
प्यारे शब्दों,
अधूरी बातों,
भीगी उम्मीदों में....
बधाई एक बेहतरीन रचना के लिये।
*** राजीव रंजन प्रसाद
इस रचना मे मैने अपने पुराने गौरव को पा लिया...... जो पता नही इन दिनो जमाने भर की तकल्लुफी मे खुद को कही भूल गया था।
दिल की बातो के तो आप सरताज हो ही।
सस्नेह,
श्रवण
बढिया कविता. बढिया ब्लाग.
विषय कोई भी हो लेकिन ऐसा कहीं भी नहीं लगता कि अन्याय किया गया है. आपसे हिन्दी-साहित्य को बहुत ही आशा है.
इस रचना की निम्न पंक्तियाँ हृदय-स्पर्शी लगीं-
हाय रब्बा!!!
कोई कुछ करे,
खोज लाए
बोलती आँखों, लम्बे बालों वाली
उस भोली लड़की के
काँपते हुए हाथों से
लिखी चिट्ठियाँ,
कि किसी की ज़िन्दगी बसती है
उन जल्दबाज़ी में लिखे
प्यारे शब्दों,
अधूरी बातों,
भीगी उम्मीदों में....
शुभकामना सहित,
मणि दिवाकर
"मैं उसकी तलाश में
पंख लगाकर उड़ता हूँ
तो दर्द की धार
पंखों को काट फेंकती है"
बेजोड़ पंक्तियाँ है, गौरव जी. दिल को बेचैन करती हैं.
आप क्या कहना चाहेंगे?
bas mai o kuch nahi kahunga
chup he rahne me fayda hai
good work
vary good gaurav,Please keep it up.
aap ki sabhi kavitain bahut umda hain. i really like them vary much.
have a nice day
vivek
बहुत सही कहा आपने
पहली बार आपके ब्लॉग पर आया
कविता बहुत अच्छी बन गई है।
अपनी तारीफ करना बुरी बात नहीं है पर मां की बात को नजरअंदाज मत कीजिएगा।
मां की बात में उनकी जिंदगी का सार भी है।
इसका भी ख्याल रखिए
आपको फिर बधाई
achcha likha hai gaurav bhai
samay mile to idhar bhi nazar daliyega
http://chetna-ujala.blogspot.com/2009_06_01_archive.html
bahut pyaari kavita kahi hai gaurav..
iski maasoomiyat ise khaas bananti hai :)
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